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________________ उन्होंने अपनी तेजोलेश्या को इस प्रकार गोप रक्खा था कि उन्होंने कोई कितना ही क्यों न सतावे, वे उसका प्रयोग नहीं करते थे। इस अपूर्व क्षमा गुण के कारण ही गौतम स्वामी हमारे लिए वन्दनीय, पूजनीय हैं। दुष्टों पर क्षमाभाव रखकर उन्हें भी अपना मित्र मान लेना आसाधारण सामर्थ्य का परिचायक है। यह सामर्थ्य देवों के सामर्थ्य से भी कहीं उत्तम है। गौतम स्वामी के इस रूप का ध्यान करने से पापों का विनाश होगा। ___ गौतम स्वामी के शरीर, तप, लेश्या, और क्षमा का वर्णन किया गया। अब यह देखना है कि उनमें ज्ञान की मात्रा कितनी थी? इस संबंध में सुधर्मा स्वामी कहते हैं-गौतम स्वामी चौदह पूर्वो के ज्ञाता थे। वे चौदह पूर्वो के ज्ञाता ही नहीं वरन् उनके रचयिता थे। गौतम स्वामी श्रुत केवली थे। जो केवल ज्ञानी की तरह निस्संदेह वचन बोलता है वह श्रुत केवली कहलाता है। गौतम स्वामी में मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान और मन पर्याय ज्ञान है। अर्थात् केवल ज्ञान को छोड़ कर शेष चार ज्ञानों के धारक हैं। यहां यह प्रश्न हो सकता है कि यद्यपि गौतम स्वामी चौदह पूर्वो के ज्ञाता और चार ज्ञानों के धनी थे, लेकिन सम्पूर्ण श्रुत में उनकी व्यापकता थी या नहीं? क्योंकि चौदह पूर्वधारियों में भी कोई अनन्त गुण हीन और कोई अनन्त गुण अधिक होता है। चौदह पूर्वधारी भी संख्यात भाग हीन, असंख्यात भाग हीन, अनन्त भाग हीन, संख्यात गुणहीन, असंख्यात गुणहीन, अनन्त गुणहीन होते हैं। और संख्यात भाग अधिक, असंख्यात भाग अधिक, अनन्त भाग अधिक संख्यात गुण अधिक, असंख्यात गुण अधिक और अनन्त गुण अधिक भी होते हैं। इस तरमता में गौतम स्वामी का क्या स्थान था? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए 'सव्वक्खरसन्निवाई विशेषण दिया गया है। सारे संसार का और तीनों कालों का साहित्य 52 अक्षरों से ही लिखा जाता है। जितने वाच्य पदार्थ हैं उतने ही वचन हैं। गौतम स्वामी को इन सब वचनों का ज्ञान प्राप्त है। वह 'सर्वाक्षरसन्निपाती हैं कोई भी अक्षर उनके ज्ञान से अज्ञात नहीं रहा है। वे सभी अक्षरों को जोड़ने वाले हैं। अथवा-'सव्व' पद का 'श्रव्य' रूप भी बन जाता है। श्राव्य का अर्थ है सुनने योग्य । गौतम स्वामी की वचन रचना श्रवण करने योग्य है, अतः वह श्राव्य-अक्षरसन्निपाती हैं। उनके मुख से कटुक, कठोर या अप्रिय वचन निकलते ही नहीं है। उनके वचन अमृत के समान मधुर और जगत् का परम कल्याण करने वाले हैं। - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १५७ 5900000
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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