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________________ पाठ - 11 प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद प्राकृत । संस्कृत - हिन्दी अरिहंता सवण्णवो अर्हन्तः सर्वज्ञाः | अरिहंत भ. सब हवंति । | भवन्ति । जाननेवाले होते हैं। कयण्णुणा सह कृतज्ञेन सह संसर्गः उपकार को जाननेवाले संसग्गो सइ कायव्यो । | सदा कर्तव्यः । | के साथ संबंध करना चाहिए। 3. छप्पआ महुं षट्पदाःमध्वास्वादन्ते। भौंरे मधु का स्वाद चक्खेज्जा । लेते हैं। सूरओ जिणिंदस्स | सूरयो जिनेन्द्रस्य आचार्यगण जिनेश्वर के सासणस्स पहावगा शासनस्य प्रभावका : | शासन के प्रभावक हैं। संति । सन्ति । 5. गुरुणो सीसाणं |गुरवः शिष्येभ्यः गुरुजन शिष्यों को सूत्रों सुत्ताणमट्ठमुवदिसंति । सूत्राणामर्थमुपदिशन्ति || के अर्थ बताते हैं । 6. अहिण्णु सत्थाणमत्थेसु अभिज्ञाः शास्त्राणामर्थेषु पंडित शास्त्रों के अर्थ न मुज्झन्ति । न मुह्यन्ति । में मुंझाते नहीं हैं। 7. |साहवो तत्तेसुं विम्हयं साधवस्तत्त्वेषु विस्मयं | साधु तत्त्वों में आश्चर्य न पावेइरे। न प्राप्नुवन्ति । नहीं पाते हैं। 8. सूरी साहुहिं सह |सूरिः साधुभिः | आचार्य साधुओं के साथ आवासयाई | सहाऽऽवश्यकानि आवश्यक क्रिया कम्माइं कुणइ । कर्माणि करोति । करते हैं। 9. साहुणो पमाया साधवः प्रमादात् साधु प्रमाद से सूत्र सुत्ताणि वीसरेज्ज। सूत्राणि विस्मरन्ति । | भूल जाते हैं। 10. मुणी धम्मस्स तत्ताई | मुनयो धर्मस्य तत्त्वानि मुनिजन आचार्य को धर्म सूरिं पुच्छंति । | सूरिं पृच्छन्ति । के तत्त्व पूछते हैं। 11. साहू गुरुहिं सह | साधवो गुरुभिः सह | साधु गुरु भ. के साथ गामाओ गामं विहरते । ग्रामाद् ग्रामं विहरन्ति । एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हैं। ३७ ro
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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