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________________ क्र. हिन्दी प्राकृत . संस्कृत 10जो पथ्य का सेवन जो पच्छं सेवइ, यः पथ्यं सेवते, करता है, वह बीमार |सो रुग्गो न होइ। | स रुग्णो न भवति । नहीं होता है। 11. आचार्य तीर्थंकर के आयरिया तित्थयरेण | आचार्यास्तीर्थकरेण समान है। |समा संति | | समाःसन्ति । 12. साधर्मिकों का वात्सल्य | साहम्मिआण वच्छल्लं साधर्मिकाणां इस लोक में धर्म और | एयंमि लोगम्मि धम्म, वात्सल्यमेतस्मिल्लोके परलोक में मोक्ष | परलोगम्मि य धर्म, परलोके च मोक्षं दिलाता है। | मोक्खं देइ । | ददाति । 13. मेघ पर्वत पर मेहो पव्वयम्मि मेघः पर्वते वर्षति । बरसता है। | वरिसइ । 14 साधु व्याख्यान में समणो वक्खाणे श्रमणो व्याख्याने जिनेश्वरों के चरित्र जिणेसराणं जिनेश्वराणां कहता है। चरिताई कहेइ । चरित्राणि कथयति । 15. मैं रास्ते में रीछ हं मग्गम्मि रिच्छं अहं मार्गे ऋक्षं देखता हूँ। देखेमि । पश्यामि। 16.हे मूर्ख ! तू गरीबों को हे मुक्ख ! तुं दीणे हे मूर्ख ! त्वं दीनान् किसलिए कष्ट देता है? | किमत्थं पीलेसि ? । किमर्थं पीडयसि ? | 17. तू दुर्जनों के वचन पर तुं दुज्जणाणं वयणेसुं | त्वं दुर्जनानां वचनेषु विश्वास रखता है, वीसससि, तत्तो दुहं | विश्वसिषि, ततो दुःखं इसलिए दुःख पाता है || पावेसि । प्राप्नोषि । ३६ यी
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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