SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्र. प्राकृत संस्कृत - हिन्दी 12. कइणो नरिंदस्स गुणे कवयो नरेन्द्रस्य गुणान् कवि राजा के गुणों की वण्णेइरे। | वर्णयन्ति । प्रशंसा करते हैं। 13.दुक्खेसु साहेज्जं जे दःखेष साहाय्यं ये जो दुःखों में सहायता कुणंति, ते बंधवो कुर्वन्ति, ते बन्धवः करता है, वह बन्धु है। अस्थि । सन्ति । 14.तुं अंसूणि किं त्वमश्रूणि किं | तू आँसू क्यों निकालता मुंचसि ? | मुञ्चसि ? | 15. अजिण्णे ओसढं अजीर्णे औषधं वारि । | अजीर्ण में पानी वारि। औषध है। 16/भोयणस्स मज्झम्मि भोजनस्य मध्ये भोजन के बीच में पानी वारि अमयं । | वार्यमृतम् । अमृत है। 17 सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज सूत्रस्य मार्गेण साधुगण सिद्धान्त के भिक्खू । चरेयुर्भिक्षवः । मार्ग पर चलें। 18/पज्जुन्नो जणे डहइ । प्रद्युम्नो जनान् दहति ।। काम मनुष्यों को जलाता है। 19. प्रा. निवइ मंतीहिं सद्धिं रज्जस्स मंतं मंतेइ । सं. नृपतिर्मन्त्रिभिः सार्धं राज्यस्य मन्त्रं मन्त्रयति । हि. राजा मंत्रियों के साथ राज्य की मंत्रणा करता है। 20. प्रा. निवइणो मणोण्णेहिं कव्वेहिं तुसंति । सं. नृपतयो मनोज्ञैः काव्यैस्तुष्यन्ति । हि. राजागण सुंदर काव्यों से खुश होते हैं। प्रा. धन्नाणं चेव गुरुणो आएसं दिति । सं. धन्येभ्य एव गुरव आदेशं ददति । हि. गुरु प्रशंसनीय पुरुषों को ही आदेश देते हैं । 22. प्रा. धम्मो बंधू अ मित्तो अ, धम्मो य परमो गुरु । नराणं पालगो धम्मो, धम्मो रक्खइ पाणिणो ||6|| सं. धर्मो बन्धुश्च मित्रं च, धर्मश्च परमो गुरुः । नराणां पालको धर्मः, धर्मः प्राणिनो रक्षति |6।। हि. धर्म बन्धु है, मित्र है और धर्म उत्तम गुरु है, धर्म मनुष्यों का पालन करनेवाला है, धर्म जीवों का रक्षण करता है। D ३८ R -
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy