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________________ 24. प्रा. आयारो परमो धम्मो, आयारो परमो तवो । आयारो परमं नाणं, आयारेण न होइ किं ! ||1|| सं. आचारः परमो धर्मः, आचारः परमं तपः । आचारः परमं ज्ञानम्, आचारेण किं न भवति ? 11111 हि. आचार श्रेष्ठ धर्म है, आचार उत्तम तप है, आचार उत्कृष्ट ज्ञान है, आचार से क्या नहीं होता है ! (1) हिन्दी वाक्यों का प्राकृत एवं संस्कृत अनुवाद | | - कल हिन्दी प्राकृत . संस्कृत 1. काम मनुष्य को दुःख मयणो जणं बाहए । मदनो जनं बाधते । देता है। चन्द्रमा से आकाश चंदेण गयणं छज्जइ । चन्द्रेण गगनं शोभते । शोभा देता है। जन्म से ब्राह्मण जम्मेण बंभणो न होइ, जन्मना ब्राह्मणो न भवति, नहीं बनता है, लेकिन अवि आयारेण होइ । अप्याचारेण भवति । आचार से बनता है। | लोभ मनुष्य को लोहो जणं पीलइ । लोभो जनं पीडयति । दुःखी करता है। 5. | राजा न्यायपूर्वक निवा नायेण रज्जं नृपाः न्यायेन राज्यं | राज्य करते हैं। करेन्ति । कुर्वन्ति । | पाप से मनुष्य नरक पावेण जणो नरयं | पापेन जनो नरकं | में जाता है और धर्म |गच्छइ, धम्मेण य गच्छति, धर्मेण च से स्वर्ग में जाता है । | सग्गं गच्छइ । स्वर्गं गच्छति। | मयूर बादल से खुश | मोरो मेहेण तूसइ । मयूरो मेघेन तुष्यति । होता है। 8. | तुम (दो) नृत्य के साथ तुब्भे वे नच्चेण सह युवां नृत्येन सह | गायन करते हो। गाणं करेह । गायथः । 9. तुम (दो) हाथों से हत्थेहिं तुब्भे पुप्फाइं हस्ताभ्यां यूयं पुष्पाणि पुष्प ग्रहण करते हो । गिण्हइत्था । गृहणीथ ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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