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________________ क्र.| प्राकृत संस्कृत हिन्दी 13./उज्जमेण सिज्झंति | उद्यमेन सिध्यन्ति प्रयत्न से कार्य कज्जाणि कार्याणि, सिद्ध होते हैं, न मणोरहेहिं । न मनोरथैः । | मनोरथों से नहीं। 14. रोगा ओसढेण रोगा औषधेन रोग औषध से नष्ट नस्सन्ते । नश्यन्ति । होते हैं। 15. सीसा आइरिए शिष्या आचार्यान् शिष्य आचार्यों को |विणएण वंदिरे । | विनयेन वन्दन्ते । विनयपूर्वक वंदन करते हैं। 16. सज्जणा कयाइ सज्जनाः कदाचिद् सज्जन कभी भी अपना अप्पकरं आत्मीयं सहावं न छड्डिरे । | स्वभावं न त्यजन्ति । | स्वभाव नहीं छोड़ते हैं। 17. वाहो मिगे सरेहिं व्याधो मृगाञ् शरैः शिकारी हिरनों को बाणों पहरेहिं । प्रहरति । से प्रहार करता है। 18. सीलेण सोहए देहो शीलेन शोभते देहः, देह सदाचार से शोमित होता न वि भूसणेहिं। | नाऽपि भूषणैः । है, आभूषणों से नहीं। 19. धणेण रहिओ जणो धनेन रहितो जनः धनरहित मनुष्य सर्वत्र सव्वत्थ अवमाणं सर्वत्राऽपमानं प्राप्नोति । अपमानित होता है। पावेज्ज । 20. बुहो फरुसेहिं | बुधः परुषैर्वाक्यै :कमपि | समझदार व्यक्ति वक्केहिं कंपिन न पीडयति । कठोर रचनों से किसी को पीलेइ। भी पीड़ित नहीं करता है। 21. भावेण सव्वे सिद्धे | भावेन सर्वान् सिद्धान् । हम भावपूर्वक सभी नमिमो। नमामः । सिद्धों को नमस्कार करते हैं। 22. वीयरागा नाणेण वीतरागाः ज्ञानेन वीतराग ज्ञान द्वारा लोगमलोगं च | लोकमलोकं च लोक और अलोक को मुणेइरे । जानन्ति । जानते हैं। 23. संघो तित्थं अडइ । | सङ्घस्तीर्थमटति । संघ तीर्थ में जाता है। २४
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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