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________________ क्र. हिन्दी । प्राकृत .. संस्कृत 10. साधु ज्ञान बिना सुख | समणा नाणं विणा सुहं श्रमणाः ज्ञानं विना सुखं प्राप्त नहीं करते हैं । | न पावेन्ति । |न प्राप्नुवन्ति । 11. हम स्तोत्रों द्वारा | अम्हे थोत्तेहिं जिणं वयं स्तोत्रैर्जिनं स्तुमः । जिनेश्वर की स्तुति थुणिमो । करते हैं। 12. दुर्जन सज्जनों की | सढो सज्जणे निंदेइ । शठः सज्जनान् निन्दति। निन्दा करता हैं। 13/उपाध्याय सूत्रों का । उवज्झायो सुत्ताई | उपाध्यायः उपदेश देते हैं। उवदिसइ । | सूत्राण्युपदिशति । 14 मूर्ख दीपक से वस्त्रों मुक्खो दीवेण वत्थाई मूर्यो दीपेन वस्त्राणि को जलाता है। दहइ । दहति । 15. हम फूलों द्वारा | अम्हे पुप्फेहिं जिणबिंबं वयं पुष्पैर्जिन|जिनप्रतिमा की पूजा | अच्चेमो । |बिम्बमर्चामः । करते हैं। 16. मनुष्य सर्वत्र धर्म | जणो धम्मेण सव्वत्थ |जनो धर्मेण सर्वत्र सुखं द्वारा सुख पाता है | | सुहं लहइ । लभते । 17. पंडित भी मूर्यो को | बुहा वि मुरुक्खे न बुधा अपि मूर्खान् न खुश नहीं कर सकते | पीणन्ति । प्रीणयन्ति । 18.साधु काम, क्रोध और समणा कामं, कोहं, श्रमणाः काम, क्रोध, लोभ को जीतते हैं। लोहं च जिणन्ति । लोभं च जयन्ति । 19. वीर शस्त्रों को | वीरो सत्याइं खिवइ । वीरश्शस्त्राणि क्षिपति । फेंकता है। 20. हम दो संघ के साथ | अम्हे दो संघेण सह आवां (द्वौ) सङ्घन सह तीर्थ तरफ जाते हैं । तित्थं गच्छिमो । तीर्थं गच्छावः । 21/ वाचाल (बातूनी) मुहरो जणो किमवि न मुखरो जनः किमपि मनुष्य कुछ भी | करेइ । न करोति । नहीं कर सकता है। 22. जो तत्त्व को जानता |जो तत्त्वं मुणइ, यस्तत्त्वं जानाति, स है, वह पंडित है। सो बुहो अस्थि । बुधोऽस्ति । - -
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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