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________________ क्र. प्राकृत 14. रामो सिवं लहेइ । 15. पावा सुहं न पावेन्ति 16. मयणो जणं बाहए । 17. पुत्ता पुप्फाणि चिति । 18. मुक्खो वत्थाइं उज्झे । 19. पण्णाइं पडेइरे । 20. एसो मुहं पमज्जेइ । 21. पयासेइ आइरियो । 22. धणं चोरेइ चोरो । 23. आयवो जणे पीडेइ । 24. देवा अब्भं विउव्विरे, जलं च सिंचेन्ति । 25. रामो पण्णाइं डहेइ । 26. स पोत्थयं गिण्हेइ, अहं च भूसणं गिमि । 27. अहं पावं निंदेमि । संस्कृत रामः शिवं लभते । पापाः सुखं न प्राप्नुवन्ति । मदनो जनं बाधते । पुत्राः पुष्पाणि चिन्वन्ति । पर्णानि पतन्ति । एषः मुखं प्रमार्ष्टि । प्रकाशते आचार्यः । इकट्ठा करते हैं । मूर्खो वस्त्राण्युज्झति । मूर्ख वस्त्रों का त्याग करता है । पत्ते गिरते हैं । यह मुँह धोता है । आचार्य प्रकाशते हैं - कहते हैं । चोर धन की चोरी = करता है । धूप लोगों को पीड़ा करता है । धनं चोरयति चौरः । आतपो जनान् पीडयति । देवा अभ्रं विकुर्वन्ति, जलं च सिञ्चन्ति । रामः पर्णानि दहति । स पुस्तकं गृह्णाति, अहं च भूषणं गृणामि । अहं पापं निन्दामि । हिन्दी राम मोक्ष प्राप्त करता है । पापी (मनुष्य) सुख को प्राप्त नहीं करते हैं । 20 काम मनुष्य को दुःख देता है । पुत्र फूलों को देव बादल बनाते हैं और पानी छिड़कते हैं / राम पत्ते जलाता है । वह पुस्तक ग्रहण करता है और मैं आभूषण ग्रहण करता हूँ । मैं पाप की निन्दा करता हूँ ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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