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________________ समास विग्रह :- ललियाइं च ताई कव्वाइं ललियकव्वाइं, ताई ललियकव्वाइं (कर्मधारयः) सामन्नं धणं जेसिं ते सामन्नधणा (षष्ठ्यर्थे बहुव्रीहिः)। परेसिं दुक्खं परदुक्खं तम्मि परदुक्खे (षष्ठी तत्पुरुषः) । सं. विरला गुणान् जानन्ति , विरला ललितकाव्यानि जानन्ति । सामान्यधना विरलाः, परदुक्खे दुःखिता विरलाः ।।49।। हि. अल्प पुरुष गुणों को जानते हैं, अल्प पुरुष मनोहर काव्यों को जानते हैं, सामान्य (प्रत्येक के उपयोग में आनेवाला) धनवाले पुरुष अल्प होते हैं (और) अन्य के दुःख में दुःखी व्यक्ति विरल (अल्प) होते हैं। 13. प्रा. गलइ बलं उच्छाहो, अवेइ सिढिलेइ सयलवावारे । नासइ सत्तं अरई, विवड्डए असणरहिअस्स ||50।। समास विग्रह :- सयलो य एसो वावारो सयलवावारो (कर्मधारयः) । न रई अरई (नञ्तत्पुरुषः) । असणेण रहिओ असणरहिओ तस्स असणरहिअस्स (तृतीयातत्पुरुषः) । सं. अशनरहितस्य बलं गलति, उत्साहोऽपैति, सकलव्यापार: शिथिलयति, सत्त्वं नश्यति , अरतिर्विवर्धते ।।5011 हि. भूखे प्राणी का बल नष्ट होता है, उत्साह दूर होता है, सभी व्यापार (कार्य) शिथिल बनते हैं, सत्त्व नष्ट होता है, अरति बढ़ती है। 14. प्रा. सोमगुणेहिं पावइ न तं नवसरयससी, तेअगुणेहिं पावइ न तं नवसरयरवी । रूवगुणेहिं पावइ न तं तिअसगणवई, सारगुणेहिं पावइ न तं धरणिधरवई ।।51।। समास विग्रह :- सोमा य एए गुणा सोमगुणा, तेहिं सोमगुणेहिं (कर्मधारयः)। सरयो य एसो ससी सरयससी, नवो य एसो सरयससी नवसरयससी (उभयत्र कर्मधारयः) रूवस्स गुणा रूवगुणा तेहिं रूवगुणेहिं (षष्ठी तत्पुरुषः) । तिअसाणं गणा तिअसगणा, तिअसगणाणं वई तिअसगणवई (उभयत्र षष्ठी तत्पुरुषः)। -- - - ११९ 8
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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