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________________ सारस्स गुणा सारगुणा तेहिं सारगुणेहिं (षष्ठी तत्पुरुषः) । धरणिधराणं वई धरणिधरवई (षष्ठी तत्पुरुषः) । सं. नवशारदशशी सौम्यगुणैः तं न प्राप्नोति, नवशारदरविः तेजोगुणैः तं न प्राप्नोति । त्रिदशगणपती रूपगुणैस्तं न प्राप्नोति, धरणिधरपतिः सारगुणैः तं न प्राप्नोति ||51।। हि. नया शरदऋतु का चन्द्र सौम्यगणों द्वारा उन (अजितनाथ भ.) को प्राप्त नहीं कर सकता है, नया शरदऋतु का सूर्य तेज के गुणों द्वारा उनको प्राप्त नहीं कर सकता है, देवों के समूह का स्वामी = इन्द्र रूप के गुणों द्वारा उनको नहीं पहँच सकता है, पर्वतों का स्वामी = मेरु पर्वत पराक्रम के गुणों द्वारा उनकी बराबरी नहीं कर सकता है। 15. प्रा. जस्सत्थो तस्स सुहं, जस्सत्थो पंडिओ य सो लोए । जस्सत्यो सो गुरुओ, अत्यविहूणो य लहुओ य 1152।। समास विग्रह :- अत्येण विहूणो अत्यविहूणो (तृतीयातत्पुरुषः) । सं. यस्यार्थस्तस्य सुखं, यस्यार्थः स लोके पण्डितश्च । यस्यार्थः स गुरुकोऽर्थविहीनश्च लघुकश्च ।।52।। हि. जिसके पास धन है उसको सुख है, जिसके पास धन है वह लोक में पण्डित है, जिसके पास धन है वह बड़ा है और धनरहित मनुष्य छोटा है। 16. प्रा वंचइ मित्तकलत्ते, नाविक्खए मायपियसयणे अ | मारेइ बंधवे विहु, पुरिसो जो होइ धणलुद्धो ||53|| समास विग्रह :- मित्ता य कलत्ता य मित्तकलत्ता, ते मित्तकलत्ते (द्वन्द्व समासः)। माया य पिया य सयणा य मायपियसयणा ते मायपियसयणे (द्वन्द्वसमासः) । धणम्मि लुद्धो धणलुद्धो (सप्तमीतत्पुरुषः)। सं. यः पुरुषो धनलुब्धो भवति, (स) मित्रकलत्राणि वञ्चयति, मातापितृस्वजनांश्च नाऽपेक्षते, बान्धवानपि खु मारयति ||53|| हि. जो पुरुष धन को लोभी होता है वह मित्र और स्त्री को ठगता है, माता-पिता और स्वजनों की अपेक्षा नहीं रखता है, भाइयों को भी मारता है। १२० -
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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