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________________ 102 आओ संस्कृत सीखें 21025 श्वेत कपड़ेवाले मुनि। लम्बौ कौँ यस्य स लम्बको रासभः । बहु ज्ञानं यस्याः सा बहुज्ञाना चन्दना । नञ् बहुव्रीहि न विद्यन्ते चौराः यस्मिन् स अचौरो ग्रामः । जहाँ चौर नहीं हैं, ऐसा चौर विना का गाँव | नास्ति अन्तः यस्य तद् अनन्तं ज्ञानम् । जिसका कोई अंत नहीं है, ऐसा अनंतज्ञान | 2. तृतीयांत नाम के साथ में सह अव्यय समास पाता है, उसे सहार्थ बहुव्रीहि समास कहते हैं। 3. बहुव्रीहि समास में सह अव्यय का विकल्प से 'स' होता है । पुत्रेण सह गतः सपुत्रः / सह पुत्रः गतः । शोकेन सह वर्तते- सशोक:- सहशोकः वर्तते ।। 4. भिन्न भिन्न अर्थ में रहे हुए अव्यय, दूसरे नाम के साथ में पूर्व पद की मुख्यता से नित्य समास पाते हैं-उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । उदा. वनस्य समीपम् = उपवनम् - वन के पास रथस्य पश्चात् = अनुरथम् - रथ के पीछे 5. अकारांत अव्ययी भाव समास की विभक्ति का पंचमी सिवाय के प्रत्ययों का अम् आदेश होता है- उपवनम् । शब्दार्थ अन्त = किनारा (पुंलिंग) कुटुम्बक = कुटुंब (नपुं.लिंग) प्रसाद = महेरबानी (पुंलिं.) चरित = वर्तन (नपुं. लिंग) रासभ = गधा (पुंलिंग) पत्तन = पाटण (नपुं. लिंग) वह्नि = आग (पुंलिंग) इव = तरह (अव्यय) विघ्न = अंतराय (पुंलिंग) एकदा = एक बार (अव्यय) वसुधा = पृथ्वी (स्त्री लिंग) क्षम = समर्थ (विशेषण) वसुन्धरा = पृथ्वी (स्त्री लिंग) वीत = गया हुआ (विशेषण) अंबर = आकाश (नपुं.लिंग) रुष्ट = रोषायमान (भूतद्वंदत) द्रष्टुम = देखने के लिए (हे.कृ.) तुष्ट = खुश हुआ (भूतकृदंत) मत्त = उन्मत्त (भू.कृ.) लुप्त = नष्ट हुआ (भू.कृ.)
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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