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________________ आओ संस्कृत सीखें 2103 - धातुएं रुष = गुस्सा करना (गण 4, परस्मैपदी) लुप् = लुप्त होना (गण 4, परस्मैपदी) विद् = विद्यमान होना (गण 4, आत्मनेपदी) संस्कृत में अनुवाद करो 1. पर्वत के पास में नदी बहती है । 2. वह नदी मीठे जलवाली है । 3. जिसमें भय नहीं, ऐसे ये मार्ग हैं । 4. प्रियदर्शन पुत्र के साथ पाटण आया है । 5. जिसमें से राग चला गया, ऐसे श्री महावीर हमारे नाथ हैं | 6. राम के पीछे सीता जाती है । 7. यह मनुष्य ज्ञान रहित है | 8. नल-दमयंती वन में भटके | 9. प्रभु महावीर का ज्ञान अनंत था । 10. मत्त है हाथी जिसमें, ऐसा यह वन है । 11. जिसमें भय नहीं, ऐसे इस राज्य में लोग सुख से रहते हैं | हिन्दी में अनुवाद करो 1. बहुरत्ना वसुन्धरा । 2. वैराग्यमेवाभयम् । 3. राम-रावणयोर्युद्धं राम-रावणयोरिव । 4. अशोकोऽहं सशोकां त्वां द्रष्टुं न क्षमः । 5. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । 6. बहुविघ्नो मुहूर्तोऽयं । 7. एकदाऽपि सती लुप्त-शीला स्यादसती सदा । 8. क्षणे रुष्टः क्षणे तुष्टः, रुष्टः तुष्टः क्षणे क्षणे । अ-व्यवस्थित-चित्तानां, प्रसादोऽपि भयङ्करः ।। 9. वृक्ष-शाखा तत्पुरुषः, श्वेताश्वः कर्मधारयः । रक्त-वस्त्रो बहुव्रीहि, ईन्द्वश्चन्द्र-दिवाकरौ ।।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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