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________________ श्री कायस्थिति प्रकरण. (६७) अर्थ-वीजा मिश्र गुणस्थानके, वारमा क्षीणमोहे अने सयोगी नामना तेरमे गुणस्थाने वर्ततो जीव मरण पामतो नथी. बाकीना अग्यार गुणस्थान एटले मिथ्यात्व ?, सास्वादन २, अविरवि ३, देशविरति ४, प्रमत्त ५, अप्रमत्त ६, नित्ति ७, अनिवृत्ति ८, सूक्ष्म पराय ९, उपशांत मोह १०, अने अयोगी केवली ११ ने विषे वर्ततो जीव मरण पामे छे. (ए बीजं प्रनिद्वार पूर्ण ययु.) हवे उत्तरार्ध गाथा वडे त्रीजु प्रतिद्वार कहे छे-मिथ्याच, सास्वादन अने अविरति ए त्रण गुणस्थानक सहित जीवो परभवमां जाय छे. अर्थात ते त्रण गुणस्थानो जीवनी साथे परभवमां जाय छे. बाकीना गुणस्थानो जोवोनी साथे परभवमा जता नयी. अर्थात् मिश्र, देशविरति, प्रमत, अप्रमत, निवृत्ति, अनिवृत्ति, सूक्ष्म संपराय, उपशांत मोह, क्षीणमोह. सयोगी अने अयोगी ए गुणस्थानोने लइने जीवो परभवमा जता नथी. ७८, ( अहीं त्री प्रतिद्वार पूर्ण ययु.) ____ हवे चोथु अल्पबहुन्व नामर्नु प्रतिद्वार कहे छे:-- उवसंतिजिणा थोवा संखिज्जगुणाओ खीणमोहिजिणा। सुहमनिअघिअनिअट्टि तिनि वि तुल्ला विसेसहिआ७९ अर्थ-आधारने विषे आधेयनो उपचार थवाथी गुणस्था. नने ठेकाणे गुणस्थानने विषे वर्तता जीवो लेवाय छे तेथी करीने उपशांति जिनो एटले उपशांत मोहने विषे वर्तता जीवो सर्वथी थोडा छे. कारण के उपशम श्रेणी प्रतिपद्यमान जीवो एक समयमां उत्कर्षथी चोपन लभ्य थाय छे. तेमनाथी क्षीणमोह संख्यात गुणा छे. कारण के क्षपक श्रेणी प्रतिपद्यमान जीवो एक समरे एकसोने आठ लभ्य थइ के छे आ उत्कर्षनी अपेक्षाए जाणवू. जघन्यनी अपेक्षाए तो तेथी उलटुं पण होइ शके. जेमके क्षीणमोह सौथी
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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