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________________ मूढ तथा भाषांतर. चोथा गुणस्थानकनी जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तनी जाणवी. ४. ७५. देसूणपु वकोडी गुरु लहुअंच अंतमुहु देसं । छइगारसंना लहु समया अंतमुहु गुरुआ ॥ ७६॥ अर्थ-पांचमा देशविपति गुणस्थानकनी उत्कृष्ट स्थिति आठ वर्षे उणी करोड पूर्वनी जाणवी: कारण के कोइक करोड पूर्वना आयुष्यकाको जीव आठ वर्षनी उम्मर थया पछी देशविरतिने ग्रहण करे, तेथी आ प्रमाण थइ शके छे. तथा जघन्य स्थिति एक अतर्मुहर्तनी छे ५. छट्टेयी अग्यार पर्यंत एटले प्रमत्त ६, अप्रमत्त ७. निवृत्ति ८, अनिवृत्ति ९, सूक्ष्म संपराय १० अने उपशां- . तमोह ११ नामना छ गुणस्थानकनी जघन्य स्थिति एक समयनी छे, आ समयनी स्थिति भवनो परावृत्ति वडे ( भव बदलाइ जाय तो) पमाय छे. कारण के ते छए गुणस्थानकमां वर्तता जीव श्रे. णीना आरोह तथा अवरोहमां एक समय कोइ पण गुणस्थानकने पामीने पछी तरतन तेमने मरणनो संभव होय छे. ते छए गुण स्थानकनी उत्कृष्ट स्थिति अतर्मुहर्तनी छे. ७६. अंतमुहत्तं एगं अलहक्कोसं अजोगिखीणेसु । देमणं पुव्वकोडी गुरु लहु अंतमुहु जोगी ॥७७॥ : ____ अर्थ-अयोगी केवली नामना चौदमा अने क्षीणमोह नामना बामा गुणस्थानकनी जघन्य अने उत्कृष्ट स्थिति एक अनमुहूर्तनी छे. तथा सयोगी केवली नामना तेरमा मुणस्थानकनी उत्कृष्ट स्थिति नव वर्षे उणी एक करोड पूर्वनी छे, अने जघन्यथी अंतर्मुहर्तनी छे. ७७. हवे बीजं प्रतिद्वार कह :मीसे खीणसजोगी न मरत मरंतेगारसगुणेसु । तह मिच्छसामाणअविरह सहपरमवगान सेस 1961
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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