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________________ M श्री कायस्थिति प्रकरण. (१७) भव करे छ, परंतु उत्कृष्ट आयुष्यवाला सातमी पृथ्वीना नारकीओ उत्कृष्टथी चार भव ज करे छे. १७. टीकार्थ-पर्याप्त अने संज्ञी एवा विशेषणवाळा तिर्यंचो अने मनुष्योने विषे एकांतरे उत्पन्न थना सहस्रार देवलोक सुधीना देवताओ एटले भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा प्रथमना आठ कल्प (स्वर्ग) ना देवताओ तथा पहेली छ पृथ्वीना नारकीओ उत्कृष्टा आठ भव पूरे छे. जेम कोइ भवनपत्यादिकमांथी चवीने एकांतर भवनी उत्पत्तिवडे चार वार पर्याप्त संज्ञी मनुष्य थाछे. त्यार पछी एटले आठ भव कर्या पछी ते भुवनपत्यादिकमां उत्पन्न थतो नथी. ए प्रमाणे वीजे स्थाने (तियेचने विषे पण) जाणवू. तथा ( जघन्य आयुष्यवाळा) सातमी पृथ्वीना नारकी भो पर्यात संज्ञी तिर्यंचने विषे एकांतर उत्सतिने आश्रीने छ भव पूरे छे. केमके एकांतरे पर्याप्त संज्ञी तिर्यंचमां उपजता सातमी पृथ्वीना नारकीने चोथीवार सातमी पृथ्वीमां उपजवानो असंभव छ, पूर्ण एटले उत्कृष्ट आयुष्यवाळा सातमी पृथ्वीना नारकी पोताना (नारकीना) भवथी आरंभाने चार भव सुधीन पर्याप्त संज्ञी तिर्यवमां एकांतरे भ्रमण करे छे, तेथी अधिक भव करे नहीं. पजसन्निनरे छभवा, गेविज्जाण य चउक्कदेवा य । चउणुत्तरा चउभवा, दुजहन्न दुहावि दु सवठा ॥१८॥ मूलार्थ--ग्रैवेयक अने आनतादिक चार देवलोकना देवो पर्याप्त संज्ञी मनुष्यवे विषे छ भव करे छे. चार अनुत्तर विमानवासी देवो चार भव करे छे. आ सर्व जघन्यथी बे भव करे छे, तथा सर्वार्थसिद्धिना देव जयन्य अने उत्कृषथी बे भवज करे छे.१८ टीकार्थ--ग्रेवेयक अने आनतादिक चार देवलोकना देवो पोताना भवथी मांडीने पर्याप्त संझी मनुष्यने विवे एकांतरे उत्कृष्टा
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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