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________________ (१८) मूल तथा भाषांतर. छ भव करे छे. तथा चार अनुत्तर विमानवासी देवो पोताना भवथी आरंभीने पर्याप्त संज्ञी मनुष्यने विषे एकांतरे उत्पन्न थाय तो उस्कृष्टा चार भव करे छे. अने जयन्यथी सर्वे एटले अवेयक, चार आनतादिक अने चार अनुत्तरवासी देवो पर्याप्त संज्ञी मनुष्यने विषे बे भवज करे छे. तथा सर्वार्थसिद्धिना देवताओ पर्याप्त संज्ञी मनुष्यने विषे उत्पत्तिने आश्रीने जघन्य तथा उत्कृष्टथी पण बे भव न करे छे. १८ . भूजलवणेसु दुभवा, दुहा वि भवणवणजोइसदुकप्पा । अमिआउतिरिनरे तह, मिह सनियरतिरिसन्निनरा॥१९॥ ' मूलार्थ-भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क अने पहेला बे कल्पना देवों पृथ्वी, जळ अने वनस्पतिकायने विषे जघन्य तथा उत्कर्षथी बे भवज करे छे. तथा संज्ञी अने असंज्ञी तिर्यचो अने संज्ञी मनुष्यो युगलिक तिर्यचने विषे अने युगलिक मनुष्यने विषे माहामाहे वे भव करें छे. १९. . टीकार्थ-भवनति, व्यन्तर, ज्योतिष्क अने सौधर्म तथा इशान देवलोकना देवो पृथ्वी, जळ अने वनस्पतिकायने विषे उत्पन थाय तो जघन्यपणे तथा उत्कृष्टपणे बे भव ज करे छे. केमके पृथिव्यादिकथी उधरीने (नीकळीने) तेओनी भवनपत्यादिकमां उत्पत्तिनो अभाव छे. अश्किायिक अने वायुकायिकमां तो देवगतिनी उत्पत्तिनो ज असंभव छे, एटले तेमां देवो उपजताज नथी, तेथी तेनो भव संवेध अहीं कहो नथी. तथा संझी अने असंज्ञी तिर्ययो तथा संझी मनुष्यो युगलिया तिर्यंचोने विषे तथा युगलिया मनुष्योने विषे माहोमांहे उत्पन्न थाय तो वे भव करे के. ते आ प्रमाणे-संशी अने असंज्ञी तियेच युगलिया मनुष्यने विषे तथा युगलिया तियेचने विषे तेमज संज्ञी मनुष्य युगलिया विर्यचने
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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