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________________ . . 2 __ श्री. कायस्थिति प्रकरण. (१५) मव नरकमां अने वे भव तिर्यचमां एम प्रण भव जपरे छे. मनु. अपने सातमी नरकमां जघन्यथी अने, उत्कर्षथी पण वेज भव थाय छे. केमके सातमी पृथ्वीथी नीकळीने ते. अवश्य मत्स्यमांज उत्पन्न थाय छे. (मनुष्य थतो ज नथी.) १४. गेविजाण य चउगे, सग पणगूत्तर चकिति जहन्नं । पवनरो तिसवढे, दुहा दुभव तमतमाइ पुणो॥ १५ ॥ .. मूलार्थ-पर्याप्त संज्ञो मनुष्य अवेयकमां अने आनतादिक चार देवलोकमां एकांतर सातु भव करे छे, प्रथमना चार अनुचर विमानमां पांच भव करें. है, बन्नेमां जघन्यथी त्रण भव करे छे. सर्वार्थ सिद्धिमां जयन्य अने उत्कृष्टपणे ऋण भव ज करे छे. तथा तमतमा पृथ्वीने विषे जघन्य अने उत्कृष्टथी वे भव करे छे. १५.. टीकार्थ-पर्याप्त सज्ञो मनुष्य नव ग्रैवेयकमां अने आनतादिक.चार देवलोक ( ९-१०-११-१२) मां एकांतर गति करे तो उत्कृष्टथी सात भव पूर्ण करे छे, जेम कोइ मनुष्य आनतादिकमां उत्पन थयो, त्यांथी चवीने मनुष्य थयो, त्यांथी फरीने आनतादिकमां गयो. ए रीते वणवार देवलोकमां अने चार वार मनुष्यमां उत्पन्न याय छे. तथा चार अनुत्तर विमानमां एकांतर गमन करे तो उत्कृष्टथी पांच भव कर छे. तेमां पहेलो, मध्यनो अने छेल्लो एम त्रण भर मनुष्यना अने बच्चे बच्चे बे भव विजयादिकना, ए प्रमाणे पांच भवज करे छे. या बन्नेमां (नवौवेयक, चार कल्य ने चार अनुत्तरमां) जघन्यथी त्रण भव करे छे. केमके आनतादिक देवो मनुष्यमांथीज थाय छे-एटले मनुष्यज आनता. दिकमां जाय छे, अने त्यांची चवीने पाछा मनुष्यने विषेज उत्पन्न बाय छे. तया सर्वार्थ सिद्धिने विषे मनुष्य जयन्य अने उत्कृष्थी पण प्रणज भव करे के केमके सर्वार्थ सिदिमांधी आवेलो मनुष्य
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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