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________________ (१४). मूल तथा भाषांतर. - मूलार्थ-भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा सौधर्मादिक आठ देवलोकने विषे एकांतर भव भ्रमण करता मनुष्यो अने तिर्यचो उत्कर्पथी आठ भव करे छे. अने जघन्यथी बे भव करें छे. सातमो नरकमां ( एकांतर भ्रमण करतां) तिर्यंचो उत्कर्षथी सात भव करे छे, परंतु पूर्ण आयुष्ये सातमी नारकीमां उत्पन्न थाय, तो उत्कर्ष पण पांच भवो करै छे, अने जघन्यथो त्रण भय करे छे. १४. टीकार्थ-भवनपति, व्यंतर अने ज्योतिष्कने विषे तथा सौधर्मादिक आठ कल्पवासी वैमानिक देवताओने विषे एकांतर भ्रमण करतां मनुष्य अने तियेचा उत्कर्षथी आठ भवः करे छे अने जघन्यथी बे भव करे छे. तिर्यंच सातमी नरकमां एकांतर भ्रमण करतां उत्कृष्टथी सात भव कर छे. ते आ प्रमाणे-जेम कोइ करोड पूर्वना आयुष्यवाळो संज्ञी पंचेन्द्रि तिर्यंच सातमी नरकमां जघन्य आयुष्यपणे उत्पन्न थाय, त्यांथी नीकळीने तिर्यंचमां आवे, त्यांथी फरीने सातमीमां जाय, त्यांथी पाछो तियेचमां आवे, त्यांथी फरीने सातमीमां जाय, त्योथी पाछो तिर्यचमां उत्पन्न थाय, त्यांथी मरीने तेने सातमी पृथ्वीमां जवाने। असंभव छे, तेथी सात ज भयो थाय छे. सातमी नरकमां एकांतर उत्पन्न यंता तियेचने 'समग्रकाळ छासठ सागरोपम अने चार करोड पूर्व जेटलो लागे छे परंतु जो तिर्यंच तेत्रीश सागरोपम रुप उत्कृष्ट स्थितिवाळा सातमी पृथ्वीना नारकीभोमां पूर्ण आयुषे एकातर उत्पन्न थाय, तो ते (तियेच ) उत्कृष्टपणे बे वार नारकोमा जाय अने त्रणवार तिर्यंचमां उत्पन्न थाय एमां पांच भव थाय छे, त्यार पछी फरीयी ते सातमी नरके उत्पन्न थतो नथी. जघन्यथी एक १ साते भषोंमां थाने आटलो काळ लागे छे
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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