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________________ धातुसे भर-भार-बार-बाल: भृ-भार्य: वाल: माना जा सकता है। (२) अम्बाऽस्मा अलं भवतीति वा अथवा माता ही इसके लिए पर्याप्त होती है। इसके अनुसार इस निर्वचनमें अम्वा+ अल= अम्वालम् बाल: माना गया है। (३) अम्बा अस्मै बलं भवतीतिवा अथवा बच्चे के लिए माता ही बल होती है। इसके अनुसार इस निर्वचनमें अम्बा+बलुबाल शब्द बना(४)बलो वा प्रतिषेधव्यवहित: अथवा बलका प्रतिषेध अबल तथा अबलका अ बल मध्यस्थ होकर अबल ब + अ + ल- बालः। अर्थात् जिसे अपना बल नहीं होता या जो अबल होता है। उपर्युक्त सभी निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखते हैं। ध्वन्यात्मक आधार किसीका भी पूर्ण संगत नहीं है। अन्तिम निर्वचन बल् धातुसे मानने पर ध्वन्यात्मक संगति होगी लेकिन यास्कने अर्थको ध्यानमें रखकर ही बाल को प्रतिषेधसे व्यवहित कहा है। व्याकरणके अनुसार बल संचलने धातुसे घञ् प्रत्यय कर बाल: शब्द बनाया जा सकता है।३० (१९) अतूर्त :- इसका अर्थ होता है शीघ्रता न करने वाला निरुक्तके अनुसार अतूर्ण इति वा अत्वरमाण इति वा अर्थात् जो गंभीर हो, शीघ्रता करने वाला न हो। इस शब्दमें अ+त्वर् धातुका योग है। व का उ सम्प्रसारणका परिणाम है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। दुर्गाचार्यने अतूर्त का अर्थ अचपल किया है।३१ (२०) स्थ :- यह युद्धोपकरणमें परिगणित है। इसे युद्ध आदिमें प्रयुक्त होने वाला वाहन कहा जा सकता है। चतुरंगिणी सेनामें स्थकी भी गिनती होती है, जो स्थ- सेनाका वाचक होगा। स्थ शब्दके निर्वचनमें यास्कका कहना है (१) स्थः रहतेर्गतिकर्मण:३२ अर्थात् यह शब्द गत्यर्थक रंह धातुके योगसे निष्पन्नहोता है रह्क्यनूरथः रथ गतिमानहोताहै(२) स्थिरतेर्वास्याद्विपरीतस्य३ अर्थात् स्थिर शब्दको विपरीत कर रथ शब्द बनाया जा सकता है स्थिर-रस्थि-स्थ। उक्त निर्वचनमें शब्द विपर्ययके साथ ही अर्थ वैपरीत्यकी भी संभावना है। (३) रममाणोऽस्मिंस्तष्ठतीति वा३२ अर्थात् इसमें मनुष्य आराम (आनन्द) से बैठता है। इसके अनुसार इस शब्दमें रम्+स्था धातुओंका योग है- रम्-स्थरथः (४) रपतेर्वा३२ अथवा यह शब्द रप् शब्दं धातुके योगसे निष्पन्न होता है- रप् शब्दे+ थ:-रथः। रथ चलने पर शब्द करता है। (५)रसतेर्वा३२ अर्थात् यह शब्द रस् शब्दे धातुके योगसे निष्पन्न होता है-रस शब्द+थ:-रथ: इसके अनुसार भी रथ चलने पर शब्द करता है ऐसा माना जायगा। उपर्युक्त सभी निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। अन्तिम ४२८:व्युत्पत्रि विज्ञान और आचाय यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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