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________________ दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक आधार भी संगत है। अंतिम दोनों निर्वचनोंके अतिरिक्त शेषमें व्यंजनगत औदासिन्य है।३३ व्याकरणके अनुसार रम् धातुसे क्थन् प्रत्यय कर स्थ शब्द बनाया जा सकता है।३४ (२१) दुन्दुमि :- इसका अर्थ युद्ध वाद्य, नगाड़ा होता है। निरुक्तके अनुसार- दुन्दुभिरिति शब्दानुकरणम्३२ अर्थात् दुन्दुभिः शब्द शब्दानुकरणके आधार पर निर्मित है। उससे दुम् दुम् आवाज होने के कारण उसका नाम दुन्दुभिः पड़ गया। (२) द्रुमोभिन्न इतिवा३१ अर्थात् वृक्ष ही कटा हुआ सा होता है। यह आकृति सादृश्य के आधार पर प्रसिद्ध हुआ। कटे हुए द्रुम के सदृश दुन्दुभिः होता है। वृक्षके कटे भाग को सछिद्र चर्मसे आवृत कर वह बनाया जाता है।३५ फलत: द्रुभिद् से दुन्दुभिः माना गया है। (३) दुन्दुभ्यतेर्वा स्याच्छब्दकर्मणं :३२ अर्थात् शब्दार्थक दुन्दुभ् धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है। इसके बजाने पर आवाज होती है। प्रथम निर्वचन शब्दानुकरण पर, द्वितीय सादृश्य पर तथा तृतीय धातुज सिद्धान्त पर आधारित है। अन्तिम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे सर्वथा उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार दुन्दु उषपद उभ् पूरणे धातुइन्३६ प्रत्यय कर दुन्दुभि: शब्द बनाया जा सकता है। दुन्दुभि को भी युद्धोपकरण माना गया है प्राचीनकाल में दुन्दुभि की आवाज से युद्ध आरम्भ होता था। (२२) इषुधि :- इसका अर्थ होता है- वाण रखने का पात्र- तरकस। निरुक्त्तके अनुसार इषुधिरिषूणां निधानम्३२ अर्थात् यह वाणोंके रखने का स्थान पात्र होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें इषु + धा धारणे धातुका योग है. इषु+ धा=इषुधिः इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाव विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इषु +धा कि प्रत्यय कर इषुधि शब्द बनाया जा सकता है। इसे यास्क युद्धोपकरणके अन्तर्गत मानते हैं। (२३) चिश्वा :- धनुषसे निकलने वाली आवाजको चिश्चा कहते हैं। हसनार्थक भी चिश्चा शब्द माना जाता है। निरुक्तमें चिश्चा शब्द को शब्दानुकरण कहा गया है क्योंकि यह ची ची शब्द करता है। हसनार्थक मानने पर पुंख की दीप्ति से यह प्रदीप्त होता है या हसता है ऐसा अर्थ संभव है। शब्दानुकरणं सिद्धान्त पर आधारित यह शब्द भाषा वैज्ञानिक महत्व रखता है। यास्कने इसके धातु प्रत्ययका निर्देश नहीं किया है। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्राय : नहीं देखा जाता। ४२९:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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