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________________ भाषा विज्ञान या तुलनात्मक भाषा शास्त्र । कुछ दिनोंसे हिन्दी में भाषिकी शब्द का प्रयोग भी इस विज्ञानके लिए होने लगा है । भाषिकीका सम्बन्ध भाषासे है तथा लघु नाम अधिक सार्थक प्रतीत होता है। वर्तमान समयमें इस विज्ञानका अधिक प्रचलित नाम भाषा विज्ञान या भाषा शास्त्र ही है, जो फिलोलाजी (Philology) तथा लिंग्विस्टिक (Linguistic) का हिन्दी रूपान्तर है। __ 19 वीं शताब्दी में भाषा विज्ञानके पुनर्जागरणका काल आया । प्रथमतः इसका नाम कम्पेरेटिभ ग्रामर (Comparative Grammar) रखा गया, क्योंकि इसका क्षेत्र व्याकरण के अन्दर ही सीमित था । व्याकरणके ही तुलनात्मक अध्ययन को भाषा विज्ञान के शब्दों में हिन्दी में तुलनात्मक व्याकरण कह सकते हैं | उस समय व्याकरण तथा भाषा विज्ञान प्रधानतया एक ही विषय के अन्तर्गत आते थे । भाषा विज्ञानकी मात्र विशेषता थी तुलनात्मक अध्ययन की। कुछ समय के बाद लोगों ने अनुभव किया कि भाषा विज्ञान व्याकरण के तुलनात्मक अध्ययन के अतिरिक्त और कुछ है। फलतःइस नाम से विरक्ति होने लगी । भाषा के तुलनात्मक अध्ययन होने के कारण इसका नाम कम्पेरेटिभ फिलालाजी (Comparative Philology) हुआ । समयान्तर में कम्पेरेटिभ शब्द भी हटा दिया गया क्योंकि किसी भी विज्ञान का यह गुण है कि उसमें तुलनात्मकता भी हो। फलतः कम्पेरेटिभ शब्द हट जाने के बाद केवल फिलोलाजी शब्द ही रहा। डेवीज ने भाषा विज्ञान के लिए 1716 ई0 में (Glossology) ग्लासोलाजी शब्द का प्रयोग किया। प्रिचर्ड ने 1841 ई में ग्लाटोलाजी (Glottology) शब्द का प्रयोग इस विज्ञान के लिए किया । बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विद्वानों ने इसके लिए ग्लाटोलाजी शब्द को ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नाम ठहराया। फिरभी इस नामकी व्यापकता नहीं होनेके कारण यह स्थायित्व ग्रहण नहीं कर सका ।कुछ देशोंमें उसकेलिए फिलोलाजी (Philology)शब्द प्रचलित हो गया था । यह शब्द यूनानी भाषा का है| Philos+Logos =Philology/Philos का अर्थ होता है प्रेम तथा Logos का अर्थ होता है भाषा का ज्ञान । प्रारंभ में इसका अर्थ था ज्ञानका प्रेम,साहित्य शास्त्रीय दृष्टिसे भाषा का अध्ययन, व्याकरण, आलोचना आदि । बादमें इसका सम्बन्ध उस ज्ञान से हो गया जो शास्त्रीय भाषाओं के भाषा शास्त्रीय अध्ययन का विषय था । आरंभ में तो यह ८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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