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________________ नाम कम्पेरिटिभ शब्द से युक्त था, किन्तु बाद में कम्पेरेटिभ शब्द नही रहा । मात्र फिलौलाजी ही प्रसिद्ध हुआ । भाषा विज्ञान के लिए एक नाम जो भाषाविदों में समादृत हुआ, वह है (Linguistic) लिंग्विस्टिक । फ्रांस में इसे लोग Linguistique तथा जर्मन के लोग स्प्राख विशेन शफ्ट | (Sprech Wisomchaft) कहते है। रूसी भाषा में इस विज्ञान को अजिकौज्नाज्नीय (Yazelikoznaxie) कहते है। सायंस आफ लैंग्वेज (Science of Language) का भी सूत्रपात इस विज्ञान के नामकरण के लिए हुआ था । लेकिन इस प्रकार का वृहत् नाम परिभाषा के ऐसा लगने के कारण प्रभावशाली नहीं हो सका । अमेरिका में भाषा विज्ञान की दो शाखायें हो गयी ! वहां फिलौलाजी (Philology) शब्द का प्रयोग प्राचीन भाषा साहित्य एवं अभिलेखों की भाषाओं के अध्ययन में किया जाता है । लिंग्विस्टिक Linguistic शब्द का प्रयोग आधुनिक जीवित भाषाओं के अध्ययन के लिए होता है |5 Linguistic शब्द लैटिन शब्द Linguaa से बना है जिसका अर्थ होता है जिह्वा । भाषा विज्ञान के लिए Linguistique शब्द का प्रयोग फ्रांस में हुआ । बाद में यह शब्द अंग्रेजी में प्रचलित हुआ। लेकिन इसका रूप कुछ बदलकर Linguistic / Linguistics हो गया। आज कल यह नाम सभी नामों से अधिक प्रचलित है । प्राचीन भारत में भाषा विज्ञान के विभिन्न अंगों पर अलग-अलग कार्य होते थे । भाषा विज्ञान की सर्वांगपूर्ण स्वतंत्र कोई पुस्तक नहीं थी । शिक्षा एवं प्रातिशाख्य के कुछ अंश ध्वनि विज्ञान के रूप में कार्य करते थे । शब्द विवेचक शास्त्र के रूप में व्याकरण एवं प्रातिशाख्य परिगणित थे । निरुक्त अर्थ विज्ञान का प्रतिपादक था । निरुक्त का प्रधान कार्य शब्दों का निर्वचन प्रस्तुत करना है । इस आधार पर इसे शब्द विज्ञान का विषय भी माना जायगा । निरुक्त का मूल उद्देश्य अर्थ विवक्षा है। अर्थ के सम्बन्ध में विशिष्ट जानकारी देने के कारण इसे अर्थ विज्ञान से सम्बद्ध माना जा सकता है । निरुक्त का कार्य भाषा विज्ञान के सभी अंगों पर प्रकाश डालना नहीं है । वह केवल निर्वचन की ही प्राथमिकता देता है । फलतः यास्क ने इस विज्ञान के लिए निरुक्त नाम दिया है। निघण्टु शब्द भी भाषा विज्ञान के अंग के रूप में परिगणित हो सकते हैं शब्दों का समाम्नाय ही निघण्टु है " तथा इस निघण्टु की व्याख्या निरुक्त । 36 ९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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