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________________ निर्वचनके पर्याय निरुक्त शब्द काठक एवं मैत्रायणी संहिताओं में प्राप्त होते हैं। लेकिन इन स्थलों में प्रयुक्त निरुक्त शब्द निर्वचनके पारिभाषिक अर्थको द्योतित नहीं करते । वहां वे मात्र निर्+वच् धातुका अर्थ प्रतिपादन करते हैं। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ सांखायन में भी निरुक्त शब्द इसी अर्थमें उपलब्ध होता है। शतपथ ब्राह्मणमें निरुक्त शब्द अपने पारिभाषिक अर्थमें प्रयुक्त नहीं हुए हैं। मुण्डकोपनिषद्भ्र वेदांगोंकी गणनाके अवसर पर चतुर्थ वेदांगके रूपमें निरुक्तकी गिनती हुई है। छान्दोग्योपनिषद्में वेद विद्या शब्द का प्रयोग हुआ है जिसकी व्याख्यामें शांकर भाष्य निरुक्त अर्थ प्रतिपादित करता है। शब्दकी व्याख्याके अर्थमें निरुक्त शब्दका प्रयोग छान्दोग्योपनिषद् में प्राप्त होता है। यहां हृदय शब्दकी निरुक्ति भी दी गयी है। उपर्युक्त उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि वेद एवं ब्राह्मण ग्रन्थोंमें निर्वचन या निरुक्त शब्द का प्रयोग निरुक्त शास्त्रके अर्थमें नहीं हुआ है। यहां यह स्पष्ट प्रतिपादन या व्याख्याके अर्थमें प्रयुक्त है । ब्राह्मण ग्रन्थोंमें जिन देवताओंका स्वरूप या उनसे सम्बद्ध बस्तु अभिहित है, उसे निरुक्त कहा गया है। यह कहा जा सकता है कि ब्राह्मण ग्रन्थों में निरुक्त देव विद्याके अर्थ में प्रयुक्त है। आरण्यकों में निर्वचन शब्द का प्रयोग व्युत्पत्ति शास्त्रीय व्याख्याके अर्थमें प्राप्त होता है। उपनिषदोंमें यह निर्वचन प्रक्रिया एवं वेदांगके रूपमें प्रयुक्त हुआ है। यास्कके निरुक्तमें निरुक्ति के दो अर्थ दृश्य होते हैं, प्रथम शब्द शास्त्रीय निर्वचन सम्बन्धी अर्थ तथा द्वितीय देवविद्या सम्बन्धी अर्थ । निरुक्तमें प्रारंभ के छ: अE याय भाषा शास्त्रीय निर्वचन प्रस्तुत करते हैं तथा शेष देव विद्याका प्रतिपादन करते हैं। भाषा विज्ञान और निर्वचन भाषा शब्द संस्कृतके भाष् व्यक्तायां वाचि धातुसे अ प्रत्यय एवं टाप् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है जिसका अर्थ होता है स्पष्ट रूपसे बोलना। बोलीको भाषा मान लेनेसे भाषाका तात्पर्य स्पष्ट नहीं होता। इसके सम्बन्धमें प्रश्न उठता है, किसकी बोली-मनुष्यकी या पशु पक्षियोंकी या समस्त अण्डज उद्भिजोंकी ध्वनियां । सभी प्राणी अपने हृद्गत भावोंकी अभिव्यक्तिके लिए शब्दोच्चारण करते हैं | कुछ ध्वनियां पदार्थ संघर्षसे भी निकलती हैं जिन्हें भी ४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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