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________________ संकेतक है।धर्म शास्त्रका मूल उद्देश्य है प्रवृत्ति एवं निवृत्ति मार्गका अनुशासन करना। विषय के वाचक शास्त्र शब्दकी प्रतीति भी इसी शास् धातुसे होगी, क्योंकि किसी विषयका तथ्यात्मक उपदेश करने वाला भी शास्त्र कहलायगा। फलतः शास्त्र गूढ तत्त्व का प्रतिपादक विषय है जो विशिष्ट ज्ञानका वाचक है। निर्वचन शास्त्र इसी निर्वचन तत्त्व का प्रकाशक शास्त्र है। निर्वचन शास्त्र आधुनिक भाषा विज्ञानके शब्दोंमें व्युत्पत्ति शास्त्र कहलाता है। यद्यपि व्युत्पत्ति शास्त्र व्याकरणके अनुसार शब्दोंका व्युत्पादक शास्त्र है जो किसी शब्दकी प्रकृति एवं प्रत्ययोंको स्पष्ट करना मात्र अपना उद्देश्य रखता है। शब्दोंकी निर्माण प्रक्रियामें प्रकृति प्रत्ययका उपस्थापन व्युत्पत्ति शास्त्रका कार्य है। निर्वचन शास्त्रके अन्तर्गत व्युत्पत्तिकी प्रक्रिया तो समाहित है ही, व्युत्पति के अतिरिक्त भी कुछ तथ्योंकी स्वीकृति है, जो शब्दोंके मूलान्वेषणमें तथा अर्थ प्रकाशनमें सहायक होते हैं । भाषा विज्ञानका व्युत्पत्ति शास्त्रशब्दोंके मूलका अन्वेषक है तथा उसके ऐतिहासिक पक्षोंका उद्घाटन करता है। निर्वचन शास्त्रके अन्तर्गत भाषा वैज्ञानिक व्युत्पति शास्त्रीय विषय ही समाहित हैं। भारतीय निर्वचनकी परम्परा स्वविषय सम्बद्ध मूलान्वेषण एवं ऐतिहासिक पक्षोंका उद्घाटन करती है। अतः निरुक्त विज्ञान/शास्त्र या Etymology वह विज्ञान है जो शब्दों का उद्भव और इतिहास बतलाता है। (घ) निर्वचन तथा निरुक्त शब्दों का इतिहास ____ वैदिक संहिताओंमें निर्वचन शब्दका प्रयोग प्रायः नहीं देखा जाता। नि+वच् धातुके प्रयोग अथर्ववेदमें प्राप्त भी होते हैं लेकिन निर्वचनके अर्थ को द्योतित नहीं करते। सामवेदके देवताध्यायमें प्रथमतः निर्वचन शब्द प्राप्त होता है, जो अपना पारिभाषिक अर्थ रखता है। अथ निर्वचनम् से प्रारंभ होने वाला यह अध्याय निर्वचनका ही विवेचन करता है। उक्त अवसरपर गायत्री आदि छन्दोंके निर्वचन भी हुए हैं। ये निर्वचन निरुक्तके निर्वचनोंसे साम्य रखते हैं। यास्कने भी द्वितीय अध्यायमें अथ निर्वचनम् कह कर शब्दोंका निर्वचन प्रारंभ किया है। तैत्तिरीय आरण्यकमें इस शब्दका प्रयोग व्युत्पत्ति शास्त्रीय व्याख्याके अर्थमें हुआ हैं। ३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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