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________________ बोलके अन्तर्गत माना जा सकता है। अगर शब्दोच्चारण या बोलीको भाषा मान लिया जाय तो उसकी परिभाषा अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषोंसे अछूती नहीं रह सकती । कुछ प्राणीकी बोली एवं पदार्थ संघर्षसे उत्पन्न ध्वनियोंको भाषा विज्ञानका विषय इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे मानवकी समझसे बाहरकी चीज हैं । अनुश्रुतियोंके आधार पर पशुपक्षियों एवं स्थावर जंगमादिकों की बोलियोंकी मनुष्य द्वारा समझनेकी चर्चा प्राप्त होती है। इन बोलियोंको भाषा नहीं कहा जा सकता । पुनः केवल भाषाका सम्बन्ध विशिष्ट लेखों या साहित्यिक भाषा विशेषसे लिया जाय तो इसमें परिभाषागत उभयविध दोष लग जाएंगे। लेखके अतिरिक्त अर्थ संकेतित शब्दोंका समावेश उसमें नहीं हो सकेगा । पुनः लेख को ही भाषा कैसे माना जा सकता है, लेखकी अपेक्षा भाषाका इतिहास बहुत प्राचीन है । प्राचीन कालमें भारतमें भाषाके लिए वाक् या वाणी शब्दका प्रयोग होता था । वस्तुतः भाषा, वाक् या वाणीमें स्वरूप भेद होते हुए भी विषय भेद नहीं है । ब्रह्माके निःश्वाससे निःसृत तत्कालीन वैदिक भाषा थी।” इसके अनुसार निःश्वासको ही भाषाकी संज्ञा दी जा सकती है । वाक् या वाणीको इन्द्रने व्याकृत किया इसकी चर्चा तैत्तिरीय संहितामें प्राप्त होती है ।" वाक् शब्द वच् परिभाषणे धातुसे क्विप् प्रत्यय एवं दीर्घ विधानसे निष्पन्न होता है।" रामायणमें इसके विशेषणमें वाक् तथा मानुषी शब्दका प्रयोग हुआ है । 2° वस्तुतः मानुषी शब्द मनुष्यकी बोलीसे सम्बन्ध रखता है। आचार्य पाणिनिने संस्कृत के लिए भाषा शब्दका प्रयोग किया है। 21 यास्क भाषाका प्रयोग जनसामान्यमें प्रचलित वैदिक भाषासे भिन्न संस्कृत भाषाके अर्थमें करते हैं। 22 ऋग्वेदमें प्रतिपादित वैखरी वाणीको भाषा कहा जा सकता है | 23 वैखरी वाणीको तुरीयवाक् कह कर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उसके पूर्वकी तीन वाक् वाणीके अन्दर परिगणित नहीं हो सकती तथा उन्हें मानुषी या मनुष्य वाक् नहीं कह सकते। शतपथ ब्राह्मणमें भी वैखरी वाणी, जो कि व्यक्त वाणी है, का उल्लेख प्राप्त होता है। 24 महर्षि पतंजलिने वाणीको प्रकट करनेके लिए व्यक्त वर्णों के समाम्नायको भाषा कहा है। 25 महर्षि यास्कने भाषा की परिभाषा देनेकी चेष्टा नहीं की है, लेकिन भाषाके संबंध में अपना उद्देश्य प्रकट कर दिया है । संस्कृत के लिए उन्होंने भाषा शब्द का प्रयोग किया, जो ५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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