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________________ अनुसार इसे अव्यय माना गया है। इस निर्वचनमें आंशिक ध्वन्यात्मकता है। आर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जाएगा। (८) ह्य :- इसका अर्थ है व्यतीत कल।२३ इसे पूर्वेयुः भी कहा जा सकता है। यास्कने भी इसे बीता हुआ समय माना है।- 'ह्य : हीनः काल : २४ । ह्य : शब्द में 'हा' परित्यागे धातुका योग है हा-ह्यः। इस निर्वचनका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार यह अव्यय शब्द है। (९) अद्भुतम् :- अद्भुतका अर्थ आश्चर्य या विचित्र होता है। यास्कके अनुसार उसका अर्थ होगा जो नहीं हुआ है- 'अभूतमिव २५ अभूतके समान ही अद्भुत भी अर्थ रखता है। अद्भुत शब्दमें अ + भू का योग है। व्याकरणकी दृष्टिसे अत् आश्चर्य अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय है। भू धातु तथा डुतञ् प्रत्ययके योगसे अत् + भू + डुतञ् = अद्भुतम् शब्द बनता है।२६ भाषा विज्ञानके अनुसार इसमें व्यंजनगत औदासिन्य है। यह निर्वचन अर्थसादृश्यका परिणाम है। (१०) अन्य :- यास्कके अनुसार इसका अर्थ होता है अनेक विचारवाला, या अस्थिर बुद्धिवाला-'नानेय : २५ न + आनेय-नानेय: के अनुसार इसका अर्थ होगा जो लाने योग्य नहीं हो२७ अर्थात् नीच। वर्तमान समयमें अन्यका अर्थ दूसरा, भिन्न, इतर आदि होता है। वैदिक कालीन अर्थसे निश्चय ही ये अर्थ भिन्न हैं। इस शब्दमें आज अर्थ परिवर्तन हो गया है। यास्कके अनुसार अन्यः शब्दमें 'नी' धातुका योग है- न-अ + नी धातु = अन्यः। इसका ध्वन्यात्मक आधारपूर्ण संगत नहीं है। व्याकरण के आधार पर अन् प्राणने धातुसे य: प्रत्यय२८ करने पर अन्य: शब्द बनता है। जिसका वर्तमान कालीन अर्थ अलग, दूसरा या भिन्न आदि होता है। यास्कके उपर्युक्त निर्वचनमें अर्थात्मकता भी पूर्ण स्पष्ट नहीं है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह निर्वचन अपूर्ण माना जायेगा। (११) चित्तम् :- चित्त का अर्थ मन होता है। यास्कके अनुसार जिससे वस्तुको जाना जाता है वह चित्त कहलाता है। 'चित्तं चेतते:२९ अर्थात् चित्त शब्दमें चित्संज्ञाने धातुका योग है। चित् से चित्तं शब्द ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे संगत है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से यह निर्वचन उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे चितिसंज्ञाने धातुसे क्त प्रत्यय करने पर बनाया जा सकता है। (१२) वरः:- इसका अर्थ होता है,अच्छा,कल्याण कारक आदि। निरुक्तके अनुसार इसका अर्थवरण करनेलायक होता है। वरो वरयितव्यो भवति'३°इस शब्दमें १२५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचर्य यस्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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