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________________ वृ, वरणे धातु स्पष्ट है।३१ यास्कके इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे इसे संगत माना जा सकता है। व्याकरणके अनुसार इसे वृञ् वरणे + अप् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। यास्कने निरुक्तमें ही वरम् का अर्थ श्रेष्ठ तथा जलभी किया है। मेघ वाचक वराहः के लिए इनका कहना है कि वराहारः अर्थात् 'वरम् उदकम् आहारो यस्य'३२। इसके अनुसार वरम् का अर्थ जल होता है। वर: का प्रयोग विवाह योग्य पुरूषके अर्थमें भी पाया जाता है३३ क्योंकि वह भी वरयितव्य होता है। (१३) मघम् :- मघ का अर्थ धन होता है।३४ यास्कके अनुसार मघम् का अर्थ है जो दान किया जाय. 'मंहते दानकर्मा'३० अर्थात् मघम् शब्दमें दानार्थक मंह धातुका योग है। इसमें धातु स्थित ह का घ में वर्ण परिवर्तन हो गया है जो भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त है संस्कृत भाषाकी ख, घ, थ, ध एवं भ ध्वनियां प्राकृत भाषामें नित्य ह में परिवर्तित हो जाती है।३५ इस प्रकार का ध्वनि परिवर्तन वैदिक भाषामें भी होता रहा है। आहन अघा,३६ हन्-जघनम् , दुह-दुघा, हन्-घन आदि इसी प्रकार के उदाहरण है। वैदिक भाषामें ह ध्वनि का ही घ में परिवर्तन देखा जाता है जबकि संस्कृत की घ ध्वनि प्राकृत में ह के रूप में परिवर्तित होती है। व्याकरणके अनुसार इसे मफि अच् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (१४) दक्षिणा :- इसका अर्थ होता है जो समृद्ध करे। यास्क के अनुसार यह कर्म को समृद्ध करता है'दक्षिणा दक्षते: समर्द्धयतिकर्मण: ३७ यह शब्द समृद्धयर्थक दक्ष् धातु से निष्पन्न होता है। दक्षिणा ऋद्धिहीन को समृद्ध करती है-'व्युद्धं समर्द्धयति'३८ अपिवा प्रदक्षिणा गमनाद्दिशमभिप्रेत्य३७ अर्थात् प्रदक्षिणा गमनसे दक्षिण दिशा को अभिप्रेत कर दक्षिणा बना। प्रदक्षिण में वायें से दायें जाया जाता है। दक्षिण हस्त के लिए उत्साहार्थक दक्ष् धातु यादानार्थक दाश् धातु यास्कको अभिप्रेत है।३९ उत्साहार्थक-दक्ष् धातुके अनुसार प्रत्येक कर्ममें दक्षिण हाथ ही अधिक क्रियाशील होता है,ऐसा कहा जा सकता है। पुन: दाश् धातु के अनुसार दान दाहिने हाथ से दिया जाता है इसलिए दक्षिण शब्दमें दाश धातुका योग है। दक्षिणा शब्दमें दक्ष धातुका योम ध्वन्यात्मक दृष्टिसे सर्वथा उपयुक्त है। अर्थात्मक दृष्टिसे भी यह निर्वचन संगत है। सम्प्रति भी दक्षिणा यज्ञादि के अन्तमें यज्ञ सम्पादकों को यज्ञ सम्पादनार्थ दिए गए पुरस्कार या पारिश्रमिकका नामहै। व्याकरणके आधार पर दक्ष धातु+इनन् प्रत्यय४०+टाप् प्रत्यय दक्षिणा शब्द बनाया १२६: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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