SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गतौ धात्से वय: माना जा सकता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। लौकिक संस्कृत में वयः शब्द पक्षीका वाचक है।१६ व्याकरणके अनुसार इसे वीगतौ + असुन्१७ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। वैदिक संस्कृतसे लौकिक संस्कृत तक वय : शब्दमें अर्थादेश पाया जाता है। (५) शाखा :- शाखा वृक्षकी डालको कहते हैं। यास्कके अनुसार यह आकाशमें शयन करने वाली होती है- 'खशया भवन्ति १८ ख = आकाश, शया = शयन करने वाली। खशया से शाखा मानना वर्ण विपर्ययका परिणाम है ख+शी = शी+ख' शाखा। यास्क उसके लिए पुन: एक निर्वचन प्रस्तुत करते हैं- 'शक्नोतेर्वा १९ अर्थात् सम्यक् योगवाली शक् धातुसे यह शब्द बनता है। शक्-शख् -शाखा। आकाशस्थ शाखा जड़से भोजन ग्रहण करनेमें समर्थ होती है या शाखायें फैलने वाली होती है। शक् धातुसे शाख शब्द ध्वन्यात्मक आधार रखता है। अर्थात्मक दृष्टिकोण से 'खशया' से शाखा मानना अधिक उपयुक्त है। शाखाके कई अर्थ अभिप्रेत हैं। यह वृक्षकी डाल के अतिरिक्त वेदांश, भुजा, पक्षान्तर एवं अन्तिकके लिए भी प्रयुक्त होता है।२० व्याकरणके अनुसार शास्र व्याप्तौ + अच् + टाप् = शाखा बनाया जा सकता है। शाख्यते वृक्षोऽनया। (६) द्यु :- दिनके नामको धुः कहते हैं२१ यास्कके अनुसार दिन प्रकाशित होता है इसलिए इसे धुः कहते हैं- 'द्योतते इति सतः २२। धु शब्दमें द्युत् द्योतने धातुका योग है। फलत: इसका अर्थ होगा चमकने वाला। धुत् धातु से धुः शब्द ध्वन्यात्मक आधार रखता है। अर्थ विज्ञानकी दृष्टि से भी यह निर्वचन उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे धु + क्विप् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। यास्कके अनुसार 'धु' एक लोकका भी वाचक है। तीन प्रकारके देवताओंमें धु स्थानीय देवता भी आते हैं। लोक वाचक धु शब्द भी इसी धुत् धातुसे बनेगा। क्योंकि यह लोक भी प्रकाशमान है। द्यु धातुसे धुः शब्द मानना अधिक संगत होता क्योंकि यास्क दिद्यत शब्दमें द्यु धातुकी स्थिति मानते हैं। निर्वचन प्रक्रियासे यास्कका यह निर्वचन पूर्णत: ठीक है। अंग्रेजी भाषा का Day शब्द इसके निकट है जिसमें अर्थात्मक एकता भी है। (७) श्व:- इसका अर्थ होता है 'आने वाला कल'। इसे परेधुः भी कह सकते हैं। यास्क ने इसे उपाशंसनीय काल कहा है अर्थात् यह आशा करने लायक समय होता है-'श्व:उपाशंसनीयः कालः २२|इस शब्दमें शंस् धातुका योग मानागया हैशंस्श्व : ऐसेशब्दोंका निर्वचन प्रस्तुत करना यास्ककी अपनी विशेषता है.पाणिनीय व्याकरणके १२४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy