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________________ 239 चतुर्दशोऽध्यायः लिखेत सोमः शृंगेन भौमं शुक्र गुरूं यथा। शनैश्चरं चाधिकृतं षड्भयानि तदा दिशेत् ॥36॥ चन्द्रशृग के द्वारा मंगल, शुक्र और गुरु का स्पर्श हो तथा शनैश्चर आधीन किया जा रहा हो तो छ: प्रकार के भय होते हैं ॥96।। यदा बृहस्पतिः शुक्र भिद्येदथ विशेषतः । पुरोहितास्तदाऽमात्या: प्राप्नुवन्ति महद्भयम् ॥97॥ यदि बृहस्पति- गुरु, शुक्र का भेदन करे तो विशेष रूप से पुरोहित और मन्त्री महान् भय को प्राप्त होते हैं ।।97।। ग्रहा: परस्परं यत्र भिन्दन्ति प्रविशन्ति वा। तत्र शस्त्रवाणिज्यानि विन्द्यादर्थविपर्ययम् ॥98॥ यदि ग्रह परस्पर में भेदन करें अथवा प्रवेश को प्राप्त हों तो शस्त्र का अर्थविपर्यय-विपरीत हो जाता है अर्थात् वहाँ युद्ध होते हैं ।।98।। स्वतो गृहमन्यं श्वेतं प्रविशेत लिखेत् तदा। ब्राह्मणानां मिथो भेदं मिथः पीडां विनिर्दिशेत् ॥99॥ यदि श्वेत वर्ण का ग्रह-चन्द्रमा, शुक्र श्वेत वर्ण के ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करे तो ब्राह्मणों में परस्पर मतभेद होता है तथा परस्पर में पीड़ा को भी प्राप्त होते हैं ॥990 एवं शेषेषु वर्णेषु स्ववर्णैश्चारयेद् ग्रहः। वर्णत: स्वभयानि स्युस्तद्युतान्युपलक्षयेत् ॥100॥ इसी प्रकार रक्त वर्ण के ग्रह रक्त वर्ण ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करें तो क्षत्रियों को, पीत वर्ण के ग्रह पीत वर्ण के ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करें तो वैश्यों को एवं कृष्ण वर्ण के ग्रह कृष्ण वर्ण के ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करें तो शूद्रों को भय, पीड़ा या उनमें परस्पर मतभेद होता है। ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को रक्तवर्ण, चन्द्रमा को श्वेतवर्ण, मंगल को रक्तवर्ण, बुध को श्यामवर्ण, गुरु को पीतवर्ण, शुक्र को श्यामगौर वर्ण, शनि को कृष्णवर्ण, राहु को कृष्णवर्ण और केतु को कृष्णवर्ण माना गया है |1000 श्वेतो ग्रहो यदा पीतो रक्तकृष्णोऽथवा भवेत् । सवर्णविजयं कुर्यात् यथास्वं वर्णसंकरम् ॥10॥ 1. शृंगिणाम् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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