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________________ 240 भद्रबाहुसंहिता यदि श्वेत ग्रह पीत, रक्त अथवा कृष्ण हो तो जाति के वर्णानुसार विजय प्राप्त कराता है अर्थात् रक्त होने पर क्षत्रियों की, पीत होने पर वैश्यों की और कृष्णवर्ण होने पर शूद्रों की विजय होती है। मिश्रितवर्ण होने से वर्णसंकरों की विजय होती है ।।101॥ उत्पाता विविधा ये तु ग्रहाऽघाताश्च दारुणाः। उत्तरा: सर्वभूतानां दक्षिणा 'मृगपक्षिणाम् ॥102॥ अनेक प्रकार के उत्पात होते हैं, इनसे ग्रहघात -ग्रहयुद्ध उत्पात अत्यन्त दारुण हैं । उत्तर दिशा का ग्रहयात समस्त प्राणियों को कष्टप्रद होता है और दक्षिण का ग्रहघात केवल पशु-पक्षियों को कष्ट देता है ।। 1021 करकं शोणितं मांसं विद्युतश्च भयं वदेत् । दुभिक्षं जनमारि च शीघ्रमाख्यान्त्युपस्थितम् ।।103॥ अस्थिपंजर, रक्त, मांस और बिजली का उत्पात भय की सूचना देता है तथा जहाँ यह उत्पात हो वहाँ दुर्भिक्ष और जनमारी शीघ्र ही फैल जाती है ।।103।। शब्देन महता भूमिर्यदा रसति कम्पते । सेनापतिरमात्यश्च राजा राष्ट्र च पीड्यते ॥104॥ अकारण भयंकर शब्द के द्वारा जब पृथ्वी काँपने लगे तथा सर्वत्र शोरगुल व्याप्त हो जाय तो सेनापति, मन्त्री, राजा और राष्ट्र को पीड़ा होती है।।104॥ फले फलं यदा किंचित् पुष्पे पुष्पं च दृश्यते। गर्भाः पतन्ति नारीणां युवराजा च वध्यते ॥105॥ यदि फल में फल और पुष्प में पुष्प दिखलाई पड़े तो स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं तथा युवराज का वध होता है ।। 105।। नर्तनं जल्पनं हासमुत्कीलननिमीलने। देवाः यत्र प्रकुर्वन्ति तत्र विन्द्यान्महद्भयम् ॥106॥ जहां देवों द्वारा नाचना, बोलना, हँसना, कीलना और पलक झपकना आदि क्रियाएं की जाय; वहाँ अत्यन्त भय होता है ।।106।। पिशाचा यत्र दृश्यन्ते देशेषु नगरेषु वा। अन्यराजो भवेत्तन प्रजानां च महद्भयम् ।।107॥ 1. मगशृंगिणाम् मु०। 2. दिवा मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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