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________________ 238 भद्रबाहुसंहिता वर्षा और शरद् में शुक्ल वर्ण का सूर्य शुभप्रद है, इन वर्षों से विपरीत वर्ण हो तो भयप्रद है ।।89॥ दक्षिणे चन्द्रशृगे तु यदा तिष्ठति भार्गवः । ___ अभ्युद्गतं तदा राजा बलं हन्यात् सपार्थिवम् ॥9॥ __ यदि चन्द्रमा के उदय काल में चन्द्रमा के दक्षिण शृग पर शुक्र हो तो ससैन्य राजा का विनाश होता है ।।90।। चन्द्रभृगे यदा भौमो- विकृतस्तिष्ठतेतराम् । भृशं प्रजा विपद्यन्ते कुरव: पार्थिवाश्चला: ॥1॥ यदि चन्द्रशृग पर विकृत मंगल स्थित हो तो पजा को अत्यन्त कष्ट होता है और पुरोहित एवं राजा चंचल हो जाते हैं ।।91।। शनैश्चरो यदा सौम्यशृंगे पर्युपतिष्ठति । तदा वृष्टि भयं घोरं दुभिक्षं प्रकरोति च ॥92॥ यदि चन्द्रशृंग पर शनैश्चर हो तो वर्षा का भय होता है और भयंकर दुर्भिक्ष होता है ।।92॥ भिनत्ति सोमं मध्येन ग्रहेष्वन्यतमो यदा। तदा राजभयं विन्धात् प्रजाक्षोभं च दारुणम् ॥93॥ जब कोई भी ग्रह चन्द्रमा के भय से भेदन करता है तो राजभय होता है और प्रजा को दारुण क्षोभ होता है ।।93॥ राहुणा गृह्यते चन्द्रो यस्य नक्षत्रजन्मनि। रोगं मृत्युभयं वाऽपि तस्य कुर्यान्न संशयः ॥94॥ जिस व्यक्ति के जन्म नक्षत्र पर राहु चन्द्रमा का ग्रहण करे-चन्द्रग्रहण हो तो रोग और मृत्यु भय निस्सन्देह होता है ॥94।। क्रूरग्रहयुतश्चन्द्रो गृह्यते दृश्यतेऽपि वा। यदा क्षुभ्यन्ति सामन्ता राजा राष्ट्रं च पोड्यते ॥95॥ क्रूरग्रह युक्त चन्द्रमा राहु के द्वारा ग्रहीत या दृष्ट हो तो राजा और सामन्त क्षुब्ध होते हैं और राष्ट्र को पीड़ा होती है ।।95॥ 1. अभ्युत्कृतं मु०। 2. भौमस्तिष्ठते विकृतो भृशम् मु० । 3. प्रजास्तन मु।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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