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________________ १४२] :: :: :: :: श्री सथा।परिज्ञा ५यना जल्लमलपंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं। अजीरणो अ गीओ कत्तिअ अजो सुरवणमि ॥६७॥ रोहीडगंमि नयरे आहारं फासुअंगवसंतो। कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं ॥६८॥ एगतमणावाए विच्छिन्ने थंडिले चइअ देहं । सोऽवि तह भिन्नदेहो पडिवन्नो उत्तम अह्र ॥६९।। पाडलिपुत्तमि पुरे चंदयगुत्तस्स चेव आसीअ । नामेण धम्मसीहो चंदसिरिं सो पयहिऊणं १७०॥ कुल्लउरंभि पुरवरे अह सो अब्भुट्टिओ ठिओ धम्मे। कासीअ गिद्धपढें पञ्चक्खाणं विगयसोगो॥७१।। अह सोवि चत्तदेहो तिरिअसहस्सेहिं खज्जमाणो अ। सोऽवि तह खजमाणो पडिवन्नो उत्तम अहँ ॥७२॥ पाडलिपुत्तंमि पुरे चाणको नाम विस्सुओ आसी। सव्वारंभनिअत्तो इंगिणिमरणं अह निवन्नो ॥७३॥
SR No.023103
Book TitleAradhana Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakvijay
PublisherVijaysiddhisuri Granthmala
Publication Year1941
Total Pages186
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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