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________________ ११८ कातन्त्रव्याकरणम् परि० ९२) इति न्यायात् प्रकृतिनियमः। तर्हि प्रकृतेः श्रुत: एवशब्दः प्रत्ययं नियमयति, प्रत्ययात् श्रुत एव शब्दः प्रकृति नियमयति इति व्युत्पत्त्या प्रकृतेः श्रुत एवशब्दः कथं प्रत्ययं नियमयतीति। तदयूक्तम्, प्रत्ययात् श्रुत एवशब्द इत्यादिन्यायोऽयमप्यकिञ्चित्कर एवं प्रायेण सम्भवतीत्युक्तम्, अन्यथा यत्र विशेषणे श्रुत एवशब्दस्तत्र का वार्ता। ननु मुख्यत्वाद् इण्शब्दस्य निकटे एवशब्दो दातुं युज्यते कथं विशेषणे एवशब्दो दत्तः, अप्रधानत्वात्। तत्राह गुरुः – सविशेषणे विधिनिषेधो विशेषणमुपसंक्रामत: सति विशेष्यबाधे इत्यत्र सविशेषणे कृते नियमे विशेषणे पर्यवसित: स तत्र विशेषणं प्रधानम्, अत एव विशेषणे एवशब्दो दत्तः।। ६१० । [समीक्षा] 'इण् गतौ' (२। १३) धातु से आशीविभक्ति में 'ईयात्, ईवास्ताम्' आदि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ धातु के इकार को दीर्घविधान की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति दोनों ही व्याकरणों में की गई है। कातन्त्रकार ने साक्षात् दीर्घविधान किया है।, परन्तु पाणिनि के “एतेर्लिङि'' (अ०७।४। २४) सूत्र से उदियात्, समियात्' इत्यादि प्रयोगों में ह्रस्वविधान की व्याख्या करते हुए कहा गया है, कि ह्रस्वविधान उपसर्गयोग में ही होता है। इसके फलस्वरूप उपसर्ग के अभाव में 'ईयात्' इत्यादि प्रयोगों में दीर्घविधि उपपन्न होगी। [विशेष वचन] १. यणो व्यवहितपाठान्नेहानुवृत्तिरिति गम्यते (दु० वृ०)। २. नैयासिकास्नु ह्रस्वं विदधतेऽविशेषाद् ह्रस्व इति मन्यन्ते (दु० टी०)। ३. पूर्वेणैव सिद्धे नियमार्थमिदम् नियमश्च श्रुतत्वाद् इणः प्रकृतेरेव (वि०प०)। [रूपसिद्धि] १. ईयात्। इण् + आशी: – यात्। 'इण् गतो' (२ । १३) धातु से आशीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद – प्रथमपुरुष – एकवचन 'यात्' प्रत्यय, तथा प्रकृत सूत्र से इकार को दोर्घ आदेश। २. ईयास्ताम्। इण् + आशी: – यास्ताम्। 'इण् गतौ' (२। १३) धातु से आशीविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद – प्रथमपुरुष – द्विवचन ‘यास्ताम्' प्रत्यय तथा प्रकृत सूत्र से इकार को दीर्घ आदेश।। ६१०।। ६११. ऋत ईदन्तश्च्विचेक्रीयितयिन्नायिषु [३। ४। ७१] [सूत्रार्थ] च्चि – चेक्रीयित – यिन् – आयि प्रत्ययों के परे रहते ऋकासन्त धातु के अन्त में ईकार आगम होता है।। ६११ ।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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