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________________ प्राकृत 29 (1) प्रकृतिः शौरसेनी–वररुचि, x-2 अस्याः पैशाच्याः प्रकृतिः शौरसेनी। स्थितायां शौरसेन्यां पैशाची लक्षणं प्रवर्तयितव्यम्। भामहवृत्ति x-2 (2) प्रकृतिः शौरसेनी, वररुचि, xi-2 (3) प्रकृतिः संस्कृतं, वररुचि, xii-2 इस सम्बन्ध में हेमचन्द्र के व्याकरण का भी कुछ हिस्सा देखने लायक है (क) संस्कृतानन्तरं च प्राकृतस्यानुशासनं सिद्धसाध्यमान भेद- संस्कृतयोनेरेव तस्य लक्षणं न तु देशस्येति ज्ञापनार्थम्। हेमचन्द्र-8/1/1 (ख) गोणादयः शब्दा अनुक्तप्रकृतिप्रत्ययलोपागमवर्णविकारा बहुलं निपात्यन्ते। हेमचन्द्र-8/2/174 (ग) एते चान्यैर्देशीषु पठिना अपि अस्याभिर्धात्वादेशी कृताः, विविधेषु प्रत्ययेषु प्रतिष्ठन्तामिति। वज्जरन्तो कथयन्। वज्जरिअव्वं कथयितव्यम्। इति रूपसहस्राणि सिद्धयन्ति। संस्कृत धातुवच्च प्रत्ययलोपागमादिविधिः। हेमचन्द्र-8/4/2 पूर्वोक्त उद्धरणों से अब यह कहने की आवश्यकता नहीं रही कि प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के विषय में प्रकृतिः संस्कृतम् वाली उक्ति को बहुत महत्व दिया जाए। फिर भी प्राकृत के उन 95 प्रतिशत शब्दों की उपेक्षा हम नहीं कर सकते जिनकी कि व्युत्पत्ति संस्कृत से की जाती है। मेरा कहने का मतलब यह है कि यह कोई आवश्यक नहीं है कि प्राकृत भाषाओं को संस्कृत से उत्पन्न माना ही जाय। वस्तुतः यह जनता की मूल भाषा थी। वैयाकरणों ने इसे संस्कृत भाषा से सुव्यवस्थित किया और विद्वानों ने इसे साहित्यिक भाषा का रूप दिया। यह सुसंस्कृत वर्ग की भाषा हो गई। प्राकृत वैयाकरणों ने इसी कारण परिनिष्ठित संस्कृत भाषा के आधार पर, प्राकृत भाषा के लिए व्याकरणिक पारिभाषिक शब्दावलियों का प्रयोग किया।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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