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________________ 30 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि मूल प्राकृत भाषायें कालान्तर में समय पाकर विभिन्न बोलियों में परिणत होकर दूसरे प्रकार की ध्वनियों में परिणत हो गई। इन बोलियों में साधारणतः महाराष्ट्री प्राकृत परिनिष्ठित भाषा हो गई जो कि वररुचि और हेमचन्द्र की प्राकृत में प्रधान है और यही साहित्यिक प्राकृत हुई। अन्य प्राकृत बोलियाँ समय पाकर परिष्कृत हुई। इन बोलियों के अधिक विस्तार हो जाने के कारण धीमे-धीमे इनकी उप बोलियाँ भी हो चलीं। समय पाकर उनमें से कुछ बोलियाँ प्रधान हो चलीं। उन्होंने परिष्कृत रूप धारण कर लिया । ये प्राकृत विभिन्न भाषाओं के रूप में जानी जाने लगीं-शौरसेनी, मागधी, पैशाची, अर्ध मागधी, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश आदि । यह भी सर्वविदित ही है कि अपभ्रंश की भी विभिन्न बोलियाँ हुई। प्राकृत वैयाकरणों के मन में प्राकृत व्याकरण के विषय में बहुत पहले से ही परस्पर विरोधी विचार दीख पड़ते हैं। वे दो वर्गों में विभक्त दीख पड़ते हैं। पूर्वीय प्राकृत वैयाकरण के पुराने लेखक शाकल्य, भरत और कोहल बहुत उत्तम वैयाकरण हैं। उनका सर्वोत्तम प्रतिनिधि वररुचि है। इसका अनुसरण क्रमदीश्वर, लङ्केश्वर, रामशर्मा तर्कवागीश और मार्कण्डेय कवीन्द्र करते हैं। पश्चिमी वैयाकरणों के अच्छे प्रतिनिधि वाल्मीकि हैं जिनके सूत्रों की उपलब्धि लक्ष्मीधर की षड्भाषा चन्द्रिका में विस्तृत रूप में है। वाल्मीकि के अनुयायियों में त्रिविक्रम, लक्ष्मीधर, सिंहराज और दूसरे लोग भी हैं। हेमचन्द्र इसी की शिक्षा का अनुसरण करता है। किन्तु वे अपने संस्कृत व्याकरण की मुख्य पारिभाषिक शब्दावलियों का ही प्रयोग करते हैं। भामह कश्मीरी होते हुए भी किसी का अनुसरण नहीं करते। आधुनिक विद्वानों के प्राकृत सम्बन्धी विचार ___ हम देखते हैं कि प्राकृत की उत्पत्ति के विषय में परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं। पारम्परिक विचारधारा के लोग विस्तृत रूप में प्राकृत भाषा की प्रकृति संस्कृत को मानते हैं। पुराने आचार्य
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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