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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि यह पाया जाता है- नाग = नाय (नाना घट), राजा = राया (नाना घट वासिम) आदि। जैसा कि मागधी में र, ल में परिणत हो जाता है। किन्तु यह नियम बिहार और बंगाल की बोलियों में सर्वत्र नहीं पाया जाता । संभवतः इस परिवर्तन के नियम की प्रवृत्ति पूर्वी बोलियों के नाटकीय मागधी में प्राप्त होती है। कुछ भाषा वैज्ञानिक विशेषतायें परवर्ती प्राकृत में या अपभ्रंश में प्राप्त होती हैं। बहुत परवर्ती काल के शिलालेखों में भी यह प्रवृत्ति देखी जाती है। पञ्चदश के लिए पमदरश का प्रयोग हाथी गुम्फा के शिलालेख में देखा जा सकता है (लगभग प्रथम शताब्दी के अन्त में), पालि - पन्नरस, प्राकृत - पण्णरस, पण्णरह, हिन्दी - पनरह - पन्द्रह ( पन्दरह)। यह शिलालेखी रूप तेर, चोद, अठार, (नागार्जुन कोण्ड दूसरी सेनचुरी) । प्राकृत शब्द के अर्थ तथा विभिन्न प्रयोग विद्वानों ने प्राकृत शब्द के अर्थ दो तरीके से किये हैं। प्राकृत का एक अर्थ है जनता की मूल भाषा और दूसरा अर्थ लिया जाता है वे भाषायें जो प्रकृति से ली गई हों । प्रकृति का अर्थ है- संस्कृत । जो लोग यह विश्वास करते हैं कि प्राकृत का अर्थ होता है जनता की भाषा, उनका कहना है कि यह कभी भी संस्कृत से उत्पन्न नहीं मानी जा सकती क्योंकि संस्कृत का अर्थ होता है संस्कार किया गया, परिष्कार किया गया अर्थात् सुसंस्कृतों की भाषा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संस्कृत ही, जनता की भाषा प्राकृत से परिष्कृत करके ली गई है। जैसा कि संस्कृत पंडितों की, विद्वान् लेखकों द्वारा ग्रहीत सुसंस्कृतों की भाषा थी । स्वभावतः प्राकृत उन लोगों की भाषा हुई जो पढ़े-लिखे नहीं थे यानी स्त्रियों और बच्चों की भाषा हुई। यह उन सामान्य जनता की भाषा हुई जो संस्कृत नहीं जानते थे । सांख्य दर्शन के अनुसार- प्राकृत का अर्थ है जो प्रकृति से लिया गया हो - यानी मूल तत्त्व | इस तरह प्राकृत का सामान्य अर्थ होता है - स्वाभाविक, सामान्य या प्रांतीय भाषा । 26
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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