SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रियापद 365 और उसके साथ अय शब्द रूप जोड़ दिया जाता थाः-उदाहरण झंखा अई (/झंख 'क्रुद्ध होना-हे० 8/4/140) लिक्खाविय, लिहाविय इत्यादि। कुछ मूल और विकरण युक्त रूप भी पाये जाते हैं __णासइ (नसयति, नासयति), पावइ (*प्रापतिः प्रापयति), दलइ (दलति, दलयति); खवइ (क्षमति, क्षामयति । क्षप भी) गमइ (*गमति, गमयति), णमइ (नमति, नमयति); अपभ्रंश में प्रत्ययान्त धातु (Derivative Roots) पाये जाते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया (णिजन्त); बार-बार अर्थ बताने वाला धातुरूप (यङन्त), नाम धातु के भी कुछ क्षीण रूप कभी-कभी दीख जाते हैं :(क) प्रेरक धातु-पइसारइ, विउज्झावइ, पहावइ, नच्चावइ । (ख) यङन्त प्रक्रिया-मरुमारइ, धंधइ, जाजाहि मुसुमूरइ। (ग) नाम धातु-सुहावइ, जगडइ, हक्कारइ आदि। (घ) च्वि प्रकरण की नाम धातु-समर सिहूवाह, बंधिकिउ, गोअरिहोइ (ड.) ध्वनि धातु-किलिकिंचइ, गिणगिणइ, गुमगुमइ, धवधवइ, रुहुरुहइ, कुलु कुलइ आदि। उपरि निर्दिष्ट रूपों के प्रयोगों से स्पष्ट हो जाता है कि अपभ्रंश की धातु रूप पद्धति सामान्यतः प्राचीन भारतीय आर्यभाषा के धातु रूपों पर विकासात्मक दृष्टि डालने से यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है कि अपभ्रंश रूपों का निर्माण संस्कृत एवं प्राकृत के विकसित रूपों पर ही आश्रित है। इस बात की पुष्टि ज्यू ब्लॉक'3 महोदय ने की है। हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों को देखने से यह भी ज्ञात होता है कि संस्कृत के परस्मैपद के आधार पर कुछ रूप ज्यों के त्यों सुरक्षित हैं:-कुरु 8/4/330, भुंजन्ति 8/4/ 335, वसन्ति 8/4/339, गणन्ति, एन्तु 8/4/347, विहसन्ति 8/4/365, मज्जन्ति 8/4/339, गणन्ति, भणन्ति इत्यादि। संस्कृत के ये रूप
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy