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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि या तो प्राकृत से होते हुए आये हों या सीधे ही आये हों । प्राकृत कान्ति, सि आदि प्रत्यय तो बहुत स्थलों पर छाये हुए हैं। पालि के भी कुछ रूप पाये जाते हैं । पिशेल साहेब 14 का अनुमान कि अपभ्रंश में यत्र तत्र उपलब्ध कुछ रूप प्राचीन भारतीय आर्यभाषा प्राकृत से या अर्ध मागधी से होता हुआ आया इसका कारण यह था कि अपभ्रंश के अधिकांश लेखक जैनी थे । अतः यह स्वाभाविक ही था कि अर्धमागधी का प्रभाव उन पर अधिक हो । 366 इस प्रकार अपभ्रंश के क्रिया रूपों में अंगभूत विभिन्न प्रकार के प्रत्यय जुटते हैं। प्रो० भयाणी” ने तिङन्त प्रक्रिया के मुख्य तीन अंग माने हैं + 1. तिङन्त धातु मूलक 2. यौगिक 3. नाम मूलक । यौगिक - (क) उपसर्ग युक्त तिङन्त धातु - अणहर, पवस, पडिपेक्ख, परिहर, विहस (तथा निज्जि, पसर, विछोड़, विणड्, विणिम्भव्, विन्नास् संपड़, संपेस्, संवल् आदि) (ख) नाम धातु के साथ कर और हो प्रत्यय का रूप- खलिकर ( वसिकर), फसप्फसिहो चुण्णीहो, लहुईहो । नाम मूलंक - मूल संज्ञा जब विशेषण के रूप में प्रयुक्त होती है तब - तिकख, पल्लव्, मउलिअ, धणा । क्रियात्मक धातुमूलक–कर्, आव्, मर्, लह् मिल्, पड्, ज, खा, दे, मुअ आदि । हो, ऊपर के मूल धातु के साथ निम्नलिखित प्रत्यय लगाये जा सकते हैं। प्रेरणार्थक - निष्पन्न प्रेरक प्रत्यय 'आव' प्रत्यय-उड्डाव्, कराव्, घडाव्, नच्चाव्, प्रठाव्, हराव् । 'अव' प्रत्यय - उल्हव्, हव्, विणिम्भव् । ( पूर्व प्रत्यय संस्कृत 'आप्' प्रत्यय का विकसित रूप है )
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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