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________________ रूप विचार 299 सर्वनाम उत्तम पुरूष वाचक सर्वनाम :- इसके निम्नलिखित रूप अपभ्रंश में पाये जाते हैं। एक० बहु० प्रथमा हउँ अम्हे, अम्हइँ द्वि० मइ, मइँ तृ० मइँ, मइ (मए) अम्हें हिँ, अम्हहिँ च०, पं०, षष्ठी महु, मज्झु अम्हहँ (अम्हाण) सं० अम्हासु छन्द के कारणों से अम्हहँ का 'अम्हाहँ' भी हो जाता है। (1) उत्तम पुरूष कर्ता कारक अस्मद् शब्द के एक वचन में हउँ रूप बनता है। पिशेल ने इसकी व्युत्पत्ति अहकं (प्राकृत भाषाओं का व्याकरण 8417) से मानी है। अशोक के शिलालेखों में हकं रूप पाया जाता है। इसी का विकास प्रा० भा० आ० अहं > म० भा० आ० प्राकृत अहक रूप > परवर्ती म० भा० आ० हकं, हरं, हवं > अप० हउँ के क्रम से माना जाता है। प्राकृत पैंगलम् में हउ या हउ (2,147) रूप पाया जाता है। __इसी का विकास क्रम संदेश रासक, उक्ति व्यक्ति प्रकरण, गुजराती, राजस्थानी और व्रज भाषा में 'हौं' रूप पाया जाता है। हउँ झिज्जउँ तउ केहिं (हेम०) विआलि को हउँ मागिहउँ (उक्ति 22/5), हौं (उक्ति० 21) देखि एक कौतुक हौं रहा (पद्मा०) हौं लै आई हौं। (सूर०) बहुवचन में अम्हें अम्हई (हे0 4/8/376) रूप होता है। सं० वयम् प्राकृत में अम्ह, अम्हे, अम्हो में आदि रूप होता है। अपभ्रंश में स्वर लाघव के कारण अम्हे का अम्हइं भी होना अधिक सरल है। संस्कृत
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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