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________________ 300 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि अस्मि से अम्हि या अम्हें का होना अधिक सुगम प्रतीत होता है। डॉ० सुकुमार सेन ने इसकी व्युत्पत्ति अस्म से मानी है। अस्म > अम्ह वर्ण विपर्यय करके हम्ह > हम्म > हम > प्रा०, अप०-अम्हे < अस्मे, अप० अम्हइ < अस्म + एन (तृ०)। अम्हे योवा रिछु बहुअ (हेम०), हम जो कहा यह कपि नहि होई (मानस)। कर्म कारक द्वितीया एक वचन में मई रूप होता है। तृतीया तथा सप्तमी के एक वचन में भी मई रूप होता है। ङि-सं० माम, प्रा० मं ।मे > मइं। तृ० मई < प्रा० भा० आ० मया से बना है। सप्त० मई रूप की कल्पना सं० मयि, प्रा० मइ से की जा सकती है। इस प्रकार तीनों कारकों के एक वचन में एकरूपता आ गयी। इसी कारण अधिकांश विद्वानों ने मया से ही मई की उत्पत्ति मानी है। द्वि० ए० व० में अम्हे, अम्हइं रूप प्रथमा बहुवचन की भॉति होता है जो कि प्राकृत अम्हें से ही निर्मित प्रतीत होता है। तृ० ब० व० का अम्हेहिं रूप होता है। सं0 अस्माभिः का प्रा० में अम्हेहि रूप होता है। इसका विकास क्रम इस प्रकार से माना जा सकता है-अम्हेहिं < अस्माभिः, * अस्मेभिः * अस्मेभिम् । सप्त० ब० व० में अम्हासु रूप होता है। सं० में अस्मासु, प्रा० में अम्हसु, अम्हेसु तथा अम्हासु होता है। अपभ्रंश में प्राकृत का अन्तिम रूप सुरक्षित है। इसका विकास क्रम प्रा० अम्हेसु (म्) < * अस्मेसु, अप० अम्हासु < सं० अस्मासु। (3) पंचमी एवं षष्ठी एक वचन में महु, मज्झु रूप होता है। प्राकृत के कई रूपों में मह एवं मज्झ रूप भी होता है। अपभ्रंश में उकार बहुला प्रवृत्ति होने के कारण प्राकृत के पूर्वोक्त दोनों रूपों में उ लग गया। यह मूलतः ‘मह्यं' से बना है। मह्यं > मज्झ – मज्झं > अप० मज्झु । डॉ० सुकुमार सेन ने महु को महुं मानकर इस प्रकार व्युत्पत्ति दी है-अप० महुं < * मम (य) अम्। पंचमी एवं षष्ठी ब० वचन में अम्हहं रूप, प्राकृत अम्ह से बना है। सम्बन्ध विकारी रूप अम्ह (> गु० अम) है जो प्राकृत अपभ्रंश अम्ह,
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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