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________________ व्याकरण प्रस्तुत करने की विधि 219 शब्द रूप शब्द रूपों के कारण ही अपभ्रंश की अन्य प्राकृत भाषाओं से भिन्नता है। शब्द रूपों में निरन्तर विकास होने के कारण और भारतीय आर्य भाषाओं के शब्दरूपों में सामान्यतया हास की प्रवृत्ति आने के कारण अपभ्रंश में एकरूपता परिलक्षित होने लगी। शब्द रूप प्रायः अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त होने लगे (यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से स्त्रीलिंग वाची आकारान्त, ईकारान्त और ऊकारान्त रूप भी हैं) इनमें भी आकारान्त रूप अधिक हो चले। प्राकत वैयाकरणों के अनुसार अपभ्रंश की 'लिंग प्रक्रिया' अव्यवस्थित है। सच्ची बात तो यह है कि प्रा० भा० आ० की लिंग पद्धति शनैः-शनैः पालि और प्राकृत में क्षीण होती गयी। यद्यपि पश्चिम अपभ्रंश के शब्द रूपों की पद्धति ने बहुत कुछ प्राकृत के रूपों को सुरक्षित रखी है, क्योंकि हेमचन्द्र द्वारा उद्धृत अपभ्रंश दोहों में प्राकृत के भी कुछ शब्द रूप परिलक्षित होते हैं; फिर भी पूर्वी अपभ्रंश के शब्द रूपों में बहुत कुछ विशिष्टतायें दीख पड़ती हैं। ___इस सन्देह का मुख्य कारण यह है कि अपभ्रंश में रूपों को सामान्य बनाने की प्रवृत्ति है। इसके सभी शब्द स्वरान्त होते हैं जबकि प्रा० भा० आ० में ऐसी बात नहीं है। नपुंसक लिंग के शब्द रूप अपभ्रंश में धीरे-धीरे अदृश्य हो चले। पुल्लिंग और स्त्रीलिंग की विभक्तियाँ अ, इ और उकारान्त शब्द रूपों से प्रभावित होने के कारण, अपभ्रंश के पुल्लिंग अकारान्त शब्द रूपों की अधिकता हुई। इस कारण लिंग निर्णय करने में अव्यवस्था सी हो गयी और हेमचन्द्र जैसे प्राकृत वैयाकरण को लिंगमतन्त्रम् कहना पड़ा। प्राकत की तरह अपभ्रंश में शब्दों के दो रूप नहीं होते। इस समय तक बहुत से कारकों की संख्या घट चली थी और हमें प्रत्यक्षतः तृतीया, सप्तमी, और चतुर्थी, षष्ठी तथा पंचमी में एकरूपता सी दीखती है। वस्तुतः तीन ही कारक विभक्तियाँ अपभ्रंश में दृष्टिगत होती हैं। सामान्यतः कुछ विभक्तियों में एकरूपता सी है जैसे तृतीया, सप्तमी और चतुर्थी एवं षष्ठी के बीच ।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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