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________________ 216 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि उच्चारण को सरल बनाने के लिए प्राकृत की संधियाँ प्रायः शिथिल कर दी जाती हैं। शब्द रूपों पर 'स्वर परिवर्तन' का प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी कर्ता, कर्म और सम्बन्ध कारक में प्रत्यय नहीं लगाया जाता; इन सभी दृष्टियों से अपभ्रंश के शब्द रूप शेष म० भा० आ० से पृथक हो जाते हैं। हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण के कुछ नियम अपभ्रंश साहित्य में लागू नहीं होते। डा० ए० एन० उपाध्ये ने परमात्म प्रकाश में ऐसे बहुत से उदाहरण दिखाये हैं। अपभ्रंश ध्वनि की प्रमुख विशेषतायें पूर्ववर्ती अपभ्रंश और परवर्ती अपभ्रंश में भाषा की विकासात्मक प्रवृत्तियाँ दीख पड़ती हैं। परवर्ती अपभ्रंश में और भी शब्द रूपों की ढिलाई दीख पडती हैं। विभक्तियाँ प्रचुर मात्रा में क्षीण हो चली थीं। ध्वन्यात्मक परिवर्तन भी काफी दीख पड़ने लगा था। हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण के उद्धरणों में भी ये चीजें परिलक्षित होती हैं। अपभ्रंश ध्वनि की कुछ मुख्य भिन्नतायें देखी जा सकती हैं : (1) स्वर परिवर्तन की अव्यवस्था । (2) कहीं-कहीं ऋ स्वर की सुरक्षा करना। (3) म का वँ में परिवर्तन। (4) व्यंजन र की सुरक्षा (अनावश्यक रूप से र का आगमन) यह प्रवृत्ति प्रा० भा० आ० में नहीं दीख पड़ती। ___(5) अपभ्रंश में र की सुरक्षा होते हुए भी प्रायः र का लोप हो जाता है। जैसे - चन्द < चन्द्र, पिड, पिय < प्रिय । (6) म्ह का म्भ विकल्प करके होता है। प्राकृत में भी म्ह को म्भ होता था। गिम्भ, गिम्ह < ग्रीष्म । (7) ह्रस्व स्वरों का सानुनासिक तथा सानुस्वार रूप परवर्ती अपभ्रंश में भी मिलता है, तथा ण्ह, म्ह ध्वनियाँ भी पायी जाती हैं। न एवं न्ह का प्रयोग भी होता था। हेमचन्द्र ने आदि न की सुरक्षा का
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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