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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि इरेगुलर प्राकृत वर्डस ( लन्दन सन् 1875), रिचर्ड पिशेल का प्राकृत भाषाओं का व्याकरण (सन् 1958), पं० वेचर दास दोशी का प्राकृत व्याकरण (अहमदावाद ई० 1925), डॉ० सरयू प्रसाद अग्रवाल का प्राकृत विमर्श (सन् 1953 ) आदि । अपभ्रंश के लिये पिशेल की पुस्तक परिपूर्ण तथा बहुत ही उपयोगी है। अपभ्रंश के सामान्य ज्ञान के लिये वुलनर भी आवश्यक है। पं० बेचर दास जी ने सरल भाषा में अभिव्यक्ति की है। प्राकृत भाषाओं पर इन लोगों की विचारपूर्ण भूमिका बहुत ही उपादेय है। ज्यू ब्लॉख तथा डॉ० ग्रियर्सन ने म० भा० आ० तथा न० भा० आ० का उद्धार तो किया ही है। डा० तगारे का अपभ्रंश व्याकरण संतुलित है। डा० ए० के० सेन का तुलनात्मक व्याकरण भी अपभ्रंश पर पूर्ण प्रकाश डालता है। 214 संदर्भ 1. 2. 3. 4. 5. 6. प्राकृतभाषाओं का व्याकरण पृ० 4, प्रकाशनपरिषद्, पटना । - बिहार राष्ट्र भाषा प्रात्कृत भाषाओं का व्याकरण, 34 भूमिका पृ० 74 | भविसत्त कहा भूमिका पृ० 61 । प्राकृत भाषाओं का व्याकरण ह 34-3 - भूमिका पृ० 74। अपभ्रंश एकार्डिगं टु मार्कण्डेय - जी० ए० ग्रियर्सन (जे० आर० ए० एस०) पृ० 815 । हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास पृ० 47-48 । डा० राम कुमार वर्मा, प्रकाशक- राम नारायण लाल, इलाहाबाद, स० 1954।
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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