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________________ प्राकृत वैयाकरण और अपभ्रंश व्याकरण 213 (2) नाटकों में शाकुन्तल, रत्नावली, मालती माधव, मृच्छकटिक, वेणी संहार, कर्पूरमंजरी और विलासवती सत्तक आदि से उद्धरण लिये गये हैं। (3) भरत, कोहल, भट्टि, भोजदेव और पिंगल का भी उल्लेख किया है। __ इस प्रकार अपभ्रंश की दृष्टि से हेमचन्द्र के बाद मार्कण्डेय का प्राकृत सर्वस्व ही अधिक सुरक्षित, समुचित एवं पूर्ण ज्ञाता होता है। यद्यपि उसने पूर्ववर्ती लेखकों में शाकल्य, भरत, कोहल, भामह और वसंतराज का उल्लेख किया है, पर यह पता नहीं चल पाता कि उसने केवल उन लोगों का नाम गिनाने के लिये उल्लेख किया है या उनसे प्रभावित भी है। हमें तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसने उन लोगों का नामोल्लेख ठीक उसी प्रकार किया है जिस प्रकार सिंहराज ने वाल्मीकि का उल्लेख किया है। अस्तु; जो कुछ भी हो प्राकृत सर्वस्व में अपभ्रंश सूत्रों को देखते हुए यह मानना ही पड़ता है कि उसने अपने से पूर्ववर्ती वैयाकरण यानी हेमचन्द्र से लेकर सिंहराज तक के व्याकरणों का समुचित उपयोग कर परिष्कृत रूप में अपनी रचना प्रस्तुत की है। पूर्वोक्त प्राकृत वैयाकरणों के अतिरिक्त और भी प्राकृत वैयाकरण हो चुके हैं। किन्तु उन लोगों के व्याकरण में अपभ्रंश विषयक कोई नूतनता नहीं पायी जाती। आधुनिक प्राकृत वैयाकरण आधुनिक प्राकृत वैयाकरणों में ए० सी० वुलनर का इन्ट्रोडक्शन टू प्राकृत (1939 सन्), दिनेश चन्द्र सरकार का ए ग्रामर ऑव दि प्राकृत लैंग्वेज (943 सन्), ए० एल० घाटगे का एन इन्ट्रोडक्शन टू अर्धमागधी (1940), होएफर का डे प्राकृत डिआलेक्टो लिब्रिदुओ (बर्लिन सन 1836), लास्सन का इन्स्टीट्यूत्सी ओनेस लिंगुआए प्राकृतिकाए (बौनई 1839), कौवे का ए शोर्ट इन्ट्रोडक्शन टु द ऑर्डनरी प्राकृत ऑव द संस्कृत ड्रामाज विथ लिस्ट ऑव कॉमन
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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