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________________ 210 हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि 2. (क) स्त्रियां डहे 2. (क) स्त्रियां डहे (ख) यत्तदः स्यमोऽत्रं (ख) यत्त ढुं स्वमोः (ग) इदम इमुः क्लीबे (ग) इदमः इमु नपुंसके (घ) एतदः स्त्री पुँक्लीबे (घ) एतदेह (ङ) एह एहो एहु (ङ) एहो एहु स्त्री नृनपि (च) एईर्जश्शसोः (च) जश्शसोरेइ 3. (क) त्वतलोप्पणः 3. (क) त्वत लौप्पणं (ख) तव्यस्य इं एव्वउं (ख) तव्यस्य एव्वइ (ग) एव्बउं एवाः (ग) एव्वइ एव्वाः (घ) क्त्व इ इउइविअवयः (घ) क्त्व इ इ उ ए अवि (ङ) एप्योप्पिण्वे व्ये विण्वः (ङ) एण्येप्पिण्वेप्येप्पिणु (च) तुम एवमणाणहमणहिं च (च) तुमएवमणाणहमणहिं च पूर्वोक्त तुलना से सिद्ध होता है कि हेमचन्द्र का प्रभाव त्रिविक्रम पर बहुत अधिक था। त्रिविक्रम की सारी रचना शैली एवं उदाहरण हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों से लिये गये हैं। लक्ष्मीधर लक्ष्मीधर ने षड्भाषा चन्द्रिका में 1085 सूत्रों की व्याख्या की है जो कि एक तरह से त्रिविक्रम की टीका की टीका है। लक्ष्मीधर की सबसे बड़ी मारो विशेषता है कि उसने सूत्रों को विषय के अनुकूल व्यवस्थित कर सजाया है यानी भट्टोजी दीक्षित की सिद्धान्त कौमुदी के आधार पर प्रक्रिया के अनुसार-कारक, तिङन्त, कृदन्त, अव्ययादि सूत्रों में विभक्त किया है। इस प्रक्रिया के विभाजन से लोगों को सरलता से व्याकरण का ज्ञान हो जाता है। लक्ष्मीधर ने शब्द रूप
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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