SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत वैयाकरण और अपभ्रंश व्याकरण 209 उसे सजाया था। परम्परा के अनुसार रामायण के रचयिता बाल्मीकि ही सूत्रकार भी हैं। लक्ष्मीधर ने भी सूत्र के रचयिता वाल्मीकि को ही माना है तथा उन मूल सूत्रों की उन्होंने टीका की है। पिशेल (द ग्रामेटिक प्राकृतिक, पृ० 8, $38) का विश्वास है कि त्रिविक्रम ने हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के आधार पर सूत्रों को व्यवस्थित किया त्रिविक्रम तथा हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की तुलना त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरण के सूत्रों में तथा हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों में बहुत कुछ साम्य है। त्रिविक्रम ने अपभ्रंश के 117 सूत्र लिखे हैं। हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों से इन सूत्रों का अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध बना हुआ है। यद्यपि दोनों लेखकों की पारिभाषिक शब्दावली भिन्न-भिन्न है फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि त्रिविक्रम ने हेमचन्द्र की टीका से बहुत अधिक संग्रह किया है। यहाँ तक कि कुछ उदाहरण भी उसके अपभ्रंश संग्रह से लिये गये हैं। फिर भी त्रिविक्रम की रचना की विशेषता है कि उसने बहुत से उदाहरणों को नाटकों तथा प्राकृत साहित्य से दिया है। हेमचन्द्र के सम्पूर्ण अपभ्रंश उदाहरणों को संस्कृत में अनुवाद करना एक बड़ी भारी विशेषता है। इस तरह हेमचन्द्र के सूत्रों के साथ त्रिविक्रम के सूत्रों को मिलाने पर पता चलता है कि दोनों के अपभ्रंश सूत्रों में बहुत कुछ साम्य है :हेमचन्द्र त्रिविक्रम 1. (क) स्यादौ दीर्घहस्वौ i. (क) दिही सुपि (ख) स्यमोरस्योत (ख) स्वम्येत उत (ग) सौ पुंस्यौद्वा (ग) ओन सौ तु पुंसि (घ) एट् टि (घ) टि (ङ) डिनेच्च (ङ) डि नच्च
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy