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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
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11. अत्यारूढ़िर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा।
(शाकुन्तलम् 4/5 बंगला संस्करण)। 12. त एव शक्तिवैकल्य प्रमादालसतादिभिः । अन्यथोच्चारिताः शब्दा-अपशब्दा
इतीरिताः (भर्तृहरि)। 13. अपभ्रष्टं तृतीयं च तदनन्तं नराधिप। देशभाषा विशेषेण ।
(विष्णुधर्मोत्तर 3/3)। 14. किं चि अवब्भंस-कआ–दा (अल्फ्रेड मास्टर द्वारा BSOAS. XIII,
2 में उद्धृत), ता किं अवहंस होहिइ ? (अपभ्रंश काव्यत्रयी की भूमिका,
पृ० 17 पर उद्धृत)। 15. सक्कय पायउ पुणु अवहंसउ (सन्धि 5, कड़वक 18) 16. अवहत्थे' वि खल-यणु णिरवसेसु (रामायण-1/4. हिन्दी काव्यधारा
में उद्धृत) अवहट्टय सक्कय-पाइयंमि पेसाइयंमि भासाए।
लक्खण छंदाहरणेसुकइत्तं भूसियं जेहि।। (प्रथम प्रकम, छंद 6) 18. देसिल वयना सबजन मिट्ठा। तें तैसन जम्पञो अवहट्ठा (पृ० 6) 19. पुनु कइसन भाट-संस्कृत पराकृत अवहठ पैशाची सौरसेनी मागधी-छहु
भाषा क तत्वज्ञ-वर्णरत्नाकर (षष्ठ कल्लोल, पृ० 44) 20. प्रथम भाषा तरंड: प्रथम आद्यः भाषा अवहट् भाषा (प्रथम गाथा
की टीका) 21. 'तत्र गौरिति प्रयोक्तव्ये अशक्त्या प्रमादादिभिर्वागाव्यादयस्तत्
प्रकृतयोऽपभ्रंशाः प्रयुज्यन्ते (वाक्यपदीय-1/148 वार्तिक)। 22. गोर गावी-(प्राकृत लक्षणम् 2/16) 23. 'गोणादयः (सिद्धहेमशब्दानुशासन-4/2/174) सूत्र की टीका में कहा
है-गोणादयः शब्दा अनुक्त प्रकृति प्रत्यय लोपागम वर्णविकारा बहुलं निपात्यन्ते गौः, गोणो, गावी, गावः, गावीओ आदि। इन शब्दों को महाराष्ट्र और विदर्भ आदि के शब्द कहा है-इत्यादयो महाराष्ट्र विदर्भादिदेश प्रसिद्धा लोकतोऽवगन्तव्याः ।