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________________ हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि बाणी को जनता तक पहुँचाना चाहते थे । स्वभावतः उन्हें जनता की बाणी का अवलम्बन लेना पड़ता था । इस समय तक पुराने धर्मों के आधार पर नाना प्रकार के मत मतान्तर चल पड़े थे। नाना तरह की सामाजिक रूढ़ियां चल पड़ी थीं। यह विचारधारा विचित्र प्रकार की आन्तरिक शुद्धियों, गुह्य विचारों, सिद्धियों, यौगिक प्रक्रियाओं, संसार को जीतने के लिये स्त्रियों को जीतने की सिद्धि एवं प्रवृत्तियों को लेकर चली थी। इस प्रवृत्ति ने अद्भुत चमत्कारिक कार्य कर दिखाने के विचित्र प्रकार की होड़ साधु सन्तों में मचा दी थी। इसके शिकार कभी-कभी नृपति गण भी हो जाया करते थे। इससे इन साधुओं का राजकीय सम्मान बढ़ जाता था । इन सिद्धों की वाणियाँ जनता की भाषा में ही व्यक्त हुआ करती थीं । जनता इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहती थी। बौद्ध धर्म की दो शाखा हीनयान एवं महायान के बाद विभिन्न प्रकार की विचार धाराएँ चल पड़ीं। इसी से आगे चलकर सहज और सिद्ध सम्प्रदाय चल पड़ा। योगिनी और यक्षिणी की सिद्धि प्राप्त करना ही संसार की सिद्धि समझी गयी। इन सम्प्रदाओं में और भी विचित्र प्रकार की उद्भावनाएँ की गयीं। इन सिद्धों की वाणियों में अद्भुत शक्ति थी। एक समय इन वाणियों ने जन जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया था । इन्हीं की देखादेखी शाक्त और शैवों की विचार धाराओं में भी विचित्र प्रकार की प्रवृत्ति आयी । वाममार्गियों की सिद्धि ने तो समाज में अद्भुत प्रकार का रूप ही खड़ा कर दिया। इन सिद्धों की बाणियों में इतनी जीवन्तता थी कि तत्कालीन समाज ने इसी को सब कुछ मान लिया। इस जीवनी शक्ति को संचालित करने का माध्यम थी जनता की अपभ्रंश भाषा । जैन सम्प्रदाय भी इस होड़ा होड़ी में पीछे नहीं रहा। उसने भी अपने धर्म सम्प्रदाय के प्रचार के लिये पुरानी भारतीय कथाओं को अपने धर्म के मुताबिक नया परिवेश देकर जनता की वाणी में व्यक्त किया । साधारण जनता अपनी भाषा में इन जीवनी शक्तियों को बड़े आसानी से ग्रहण कर लेती थी। अब तक के अनुसंधान से यही पता चलता 142
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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