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________________ अपभ्रंश भाषा की भाषा है । रामचन्द्र और गुणचन्द्र के अनुसार अपभ्रंश प्रान्तीय भाषा थी। किन्तु हेमचन्द्र के समय में अपभ्रंश, संस्कृत और प्राकृत की भाँति परिनिष्ठित भाषा मात्र रह गयी। दूसरे शब्दों में कहना चाहें तो कह सकते हैं कि अब तक यह भाषा मृतप्राय हो चुकी थी अर्थात् तत्कालीन बोली जाने वाली भाषा से भिन्न होती जा रही थी । हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण से बहुत अधिक बोलियों के सन्देह का भी ज्ञान होता है। यह प्रतीत होता है कि इस समय बहुत सी बोलियाँ शनैःशनैः विकास क्रम की ओर उन्मुख हो रही थीं। संभवतः इसी कारण 'काव्यानुशासन' के परवर्ती लेखक वाग्भट ने अपभ्रंश और ग्राम्य भाषा में भेद उत्पन्न किया है । स्वतः हेमचन्द्र ने अपने काव्यानुशासन में अपभ्रंश से ग्राम्य भाषा को भिन्न लिखा है। निष्कर्ष यह कि 11वीं शती तक अपभ्रंश पूर्ण रूपेण परिनिष्ठित भाषा का रूप धारण कर चुकी थी । यह अब केवल शिष्टों की परिष्कृत रुचि वालों की भाषा मात्र हो गयी । प्राकृत और संस्कृत की भाँति यह भी साहित्य और व्याकरण में प्रचलित हुई। 12वीं शताब्दी तक या उसके पूर्व ही अपभ्रंश ने पुरानी संस्कृत तथा प्राकृत की तरह अपना स्थान ग्रहण कर लिया था । 117 वस्तुतः अपभ्रंश के दो रूप रहे होंगे - एक पूर्ववर्ती रूप और दूसरा परवर्ती रूप। इस बात की पुष्टि अपभ्रंश के साहित्य की भाषा देखने से होती है। अपभ्रंश के लिखे गये व्याकरण भी बहुत कुछ इसकी पुष्टि करते हैं । अपभ्रंश का पूर्ववर्ती रूप बहुत कुछ प्राकृत के समीप है । शब्द कोश तो प्राकृत और अपभ्रंश के एक ही हैं। रूपों में भी बहुत कुछ साम्य है । क्रिया रूपों में पार्थक्य जरूर है अर्थात् संस्कृत, पालि और प्राकृत की तरह बहुत कुछ श्लिष्ट रूप धारण किये थी । यह सही है कि इसकी श्लिष्टता (Synthetic) बहुत कम है। यह भी सही है - जैसा पं० राहुल सांकृत्यायन " ने लिखा है कि वैदिक संस्कृत ( छान्दस), पालि और प्राकृत भाषाओं में आपस में भी काफी भेद थे, पर अब भी उनकी
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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