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________________ केशी—जिस तरह तुम उस अपराधी पुरुष को दण्ड देने में देरी नहीं करोगे उसकी दीनता भरी प्रार्थना पर भी कोई ध्यान नहीं दोगे, उसी तरह नरक के परमाधार्मिक देव नारकीय जीवों को निरन्तर यातनाएँ देते रहते हैं –क्षण भर भी नहीं छोड़ते। अतः तुम्हारे दादा महाराजा आना चाहते हुए भी तुम्हें सावधानी दिलाने के लिये आ नहीं सकते हैं। (२) राजा–मैं अब दूसरा प्रमाण देता हूँ। मेरी दादी श्रमणोपासिका और धर्माराधिका थी, दिन रात धार्मिक क्रियाओं में लगी रहती थी। वह भी मुझे बहुत प्यार करती थी। आपके अनुसार वह स्वर्ग में गई होगी और अगर आत्मा व देह पृथक हैं तो वही मुझे स्वर्ग से सावधान करने के लिए आ जाती कि पाप कार्य मत करो, नहीं करने से स्वर्ग के ऐसे सुख मिलते हैं। किन्तु वह भी नहीं आई। अतः आत्मा और देह अलग-अलग नहीं है। केशी.-जब तुम नहा धोकर पवित्र वस्त्र पहिन कर किसी पवित्र स्थान में जा रहे हो और तब कोई टट्टी में बैठा पुरुष तुम्हें बुलावे तथा कुछ देर अपने साथ बातचीत करने का कहे तो क्या तुम जाओगे? राजा—उससे बात करने मैं अपवित्र स्थान में नहीं जाऊंगा। केशी—इसी तरह तुम्हारी दादी भी यहाँ आकर तुम्हें समझाने की इच्छा रखते हुए भी मनुष्य लोक की दुर्गंध आदि के कारणों से यहाँ आने में असमर्थ है। __ (३) राजा—एक और उदाहरण सुनिये। एक बार एक चोर को मेरे सामने पेश किया गया। मैंने उसे जिंदा ही लोहे की कुंभी में डलवा दिया। मजबूत ढक्कन और पिघले सीसे से कुंभी को पक्की बंद कर दी। मेरे सिपाही भी उस का पहरा दे रहे थे लेकिन कुछ दिनों बाद कुंभी खुलवाई गई तो चोर मरा हुआ पाया गया। आत्मा के उससे बाहर निकलने की तनिक भी कहीं गुंजाइश नहीं थी अतः आत्मा और देह एक ही हैं। केशी–यदि पर्वत की चट्टान सरीखी एक कोठरी हो—उसके दरवाजे वगैरा पक्के बंद हों तथा चारों ओर से लिपी हुई हो। हवा तक के घुसने का कोई छेद नहीं हो। उस कोठरी में कोई जोर-जोर से भेरी बजाएँ तो उसका शब्द बाहर निकलेगा। या नहीं? राजा–अवश्य निकलेगा। केशी-उसी तरह आत्मा भी कुंभी के बाहर निकल सकती है क्योंकि वह तो शब्द तथा वायु से भी अधिक सूक्ष्म होती है। (४) राजा–आत्मा और देह को अभिन्न सिद्ध करने के लिए एक और प्रमाण देता हूँ। एक चोर को मारकर मैंने लोहे की कुंभी में डलवा कर उसे पक्की बंद कर दी तथा सिपाहियों का पहरा भी लगा दिया। लेकिन कुछ दिन बाद उसे खुलवाई गई तो वह कीड़ों से भरी हुई थी। ये कीड़े बाहर से कैसे घुस गये? वे तो उसी देह के अंश थे। वे जीव बाहर से नहीं आये? केशी—तुमने आग में तपा हुआ लोहे का गोला देखा होगा -आग उसके प्रत्येक अंश में प्रवेश कर जाती है। गोले में कहीं छेद नहीं होता फिर वह आग भीतर कैसे घुस जाती है ? उसी तरह आत्मा अग्नि से भी सूक्ष्म होती है। ३१६
SR No.023020
Book TitleAatm Samikshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNanesh Acharya
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1995
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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